Friday, May 31, 2024

दीनाभाना वाल्मीकि के जयंती पर कोटि-कोटि नमन।

राष्ट्रीय समाज की आन-बान और शान मान्यवर दीनाभाना वाल्मीकि जी के जयंती पर कोटि-कोटि नमन। विडम्बना है कि मान्यवर कांशी राम जी के योगदान का गुणगान करने वाले इस महापुरुष का ज़िक्र करना अपनी शान के ख़िलाफ़ समझते है,।यह शख्स हैं जयपुर, राजस्थान में 28 फरवरी 1928 को जन्मे राष्ट्रीय समाज के मा० दीना भाना वाल्मीकि जी। इन्होने मान्यवर कांशीराम साहब को बाबासाहब के विचारो से प्रेरित किया, मा० कांशीराम साहब ने बाबा साहब के विचारो को पूरे भारत में फैलाया।

राष्ट्रीय समाज के दीनाभाना जी जिद्दी किस्म के शख्स थे बचपन मे उनके पिताजी सामंतीओ के यहां दूध निकालने जाते थे इससे उनके मन मे भी भैंस पालने की इच्छा हुई उन्होने पिताजी से जिद्द करके एक भैस खरीदवा ली लेकिन जातिवाद की वजह से भैस दूसरे ही दिन बेचनी पडी. कारण ? जिसके यहा उनके पिताजी दूध निकालने जाते थे उससे देखा नहीं गया उनके पिताजी को बुलाकर कहा तुम छोटी जाति के लोग हमारी बराबरी करोगे तुम भंगी लोग सुअर, भेड़ बकरी पालने वाले भैस पालोगे यह भैस अभी बेच दो उनके पिता ने अत्यधिक दबाब के कारण भैस बेच दी। यह बात राष्ट्रीय समाज के दीनाभाना जी के दिल मे चुभ गयी उन्होने घर छोड दिया और दिल्ली भाग गए।

वहां उन्होने बाबासाहब के भाषण सुने और भाषण सुनकर उन्हे यह लगा कि यही वह शख्स है जो इस देश से जातिवाद समाप्त कर सकता है।दीनाभानाजी ने बाबासाहब के विचार जाने समझे और बाबासाहब के निर्वाण के बाद भटकते भटकते पूना आ गये और पूना मे गोला बारूद फैक्टरी (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन – DRDO) मे सफाई कर्मचारी के रूप मे सर्विस प्रारंभ की। जहां मा० कांशीराम साहब पंजाब निवासी आॅफिसर थे लेकिन कांशीराम जी को बाबासहाब कौन हैं ? यह पता नही था। उस समय अंबेडकर जयंती की छुट्टी की वजह से राष्ट्रीय समाज के दीनाभाना जी ने इतना हंगामा किया कि जिसकी वजह से राष्ट्रीय समाज के दीनाभाना जी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इस महापुरुष का परिनिर्वाण पूना में 29 अगस्त 2006 को हुआ। यदि राष्ट्रीय समाज के दीनाभाना जी न होते तो मान्यवर कांशीराम नही होते और न ही व्यवस्था परिवर्तन हेतु अंबेडकरवादी जनान्दोलन चल रह होता। इस देश में जय भीम! का नारा भी गायब हो गया होता सभी राष्ट्रीय समाज के भाईयो से निवेदन है कि अपने महापुरुष रामायण के रचयिता वाल्मीकिजी एवं मा० दीनाभान वाल्मीकि जी से प्रेरणा लेकर सत्यशोधन !समाजप्रबोधन!! राष्ट्रसंघटन!!! के सिध्दांतो पर चल कर अपनी व अपने राष्ट्रीय समाज की उन्नति में एक मिसाल कायम करने का प्रयास करें.

No comments:

Post a Comment

चागंले संस्कार टिकविण्यासाठी वाचन संस्कृतीची गरज : डॉ. शंकर स्वामी वडेपुरीकर

चागंले संस्कार टिकविण्यासाठी वाचन संस्कृतीची गरज : डॉ. शंकर स्वामी वडेपुरीकर ‌पु.अहिल्यादेवी वाचनालयात " वाचन संकल्प महाराष्ट्राचा...