Friday, July 3, 2020

माता से जगदर्शन, पिता से पहचान

माता से जगदर्शन, पिता से पहचान


"29 जून 2017 के दिन पिता का वरदहस्त हमारे सर से चला गया. उनके 3 रे स्मृतिस्मरण दिवस पर माता से जगदर्शन, पिता से पहचान इन  शब्दोँ के साथ पिताजी को विनम्र अभिवादन करते हुये स्टेटस पर उनकी फोटो रखी थी. महाराष्ट्रा, कर्नाटका, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पुरे देशसे उसे स्वीकार किये जाने के मेसेज मिले".
-सिद्धप्पा अक्कीसागर( २ जुलै २०२०)

माता से जगदर्शन और पिता से पहचान मिलती है. माता - पिता के बिना हमारा अस्तित्व ही नही है. मैं सिद्धप्पा, पिता - लक्ष्मण, माता - गंगुबाई. अक्कीसागर हमारे परिवार का नाम और पहचान भी है.  29 जून 2017 के दिन पिता का वरदहस्त हमारे सर से चला गया. उनके 3 रे स्मृतिस्मरण दिवस पर माता से जगदर्शन, पिता से पहचान इन  शब्दोँ के साथ पिताजी को विनम्र अभिवादन करते हुये स्टेटस पर उनकी फोटो रखी थी. महाराष्ट्रा, कर्नाटका, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पुरे देशसे उसे स्वीकार किये जाने के मेसेज मिले. कल आषाडी एकादशी का दिन - पंढरपुर विट्ठल का दिन था. भागवत धर्म कि परंपरा ईश्वर निर्गुण – निराकार है. ये जाणती है. लेकीन संत परम्परा ने विट्ठल को एकेश्वर सगुण – साकार को माना. ब्रह्मचारी संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानयोग बताया. सावता माली आदी संतो ने भक्ती योग के साथ कर्मयोग बताया. संत तुकाराम तो वेद तो कोही हमसे जाने ऐंसा कहते थे. ब्रह्मचारी को परमार्थ आसान है. घर - प्रपंच चलाते संत तुकाराम ने विट्ठल को पाया था, परमार्थ किया था. संत तुकाराम शिष्य छत्रपति शिवाजी राजयोगी थे. कल पंढरपुर जाकर कानडा - कर्नाटकू विट्ठल की पूजा महाराष्ट्र सरकार की ओर से, शासन तथा जनता  कि ओरसे मुख्यमंत्री उद्धवजी ठाकरे ने पूजा की. देश की जनता जनार्दन को अन्नदान देके परमार्थ करनेवाले महाराष्ट्र, कर्नाटकु, आंध्र- तेलंगाना और गोवा से आये हुये किसानोंने कल के आषाढ़ी एकादशी के दिन विट्ठल दर्शन पाकर इशप्राप्ति का सुख पाया. इस महान परम्परा से चलती आयी, आषाडी एकादशी के दिन कि आप सब को शुभ कामनाएँ.

हमारा गांव चंदरगी, तहसील रामदुर्ग, जिला बेलगाम कर्नाटक. मेरे दादाजी 7 भाई थे. उनकी 250 इकड जमीन थी, 2100 से जादा भेड थे. भेडपालक भाई भिमप्पा ने गुस्से मे आकर गांव में किसीकी हत्त्या की. सबसे बडे भाई उद्दप्पा और भिमप्पा पर कोर्ट मे केस चली. गाव के पटेल, कुलकर्णी और वकील ने मिलकर एकत्रित अक्कीसागर परिवार को लुटा. भेडपालक भिमप्पा को आजन्म कारावास हुवा, उसे अंदमान भेजा गया. बहोत सारी जमीन, जायदाद, नाम, शोहरत सब चल बसा. परिवार बदनाम हुवा. जब दादाओं भाई अलग हो रहे थे तब 2 गोणी अशर्फिया की गिनती हुयी थी.14 साल बाद भेडपालक भिमप्पा गांव आया. तबतक 2 दादाजी गुजर गये थे. मेरे दादाजी सिद्दप्पा अलग हुये. मेरे दादाजी सबसे छोटे, उनका ही नाम सिद्धप्पा मुझे दिया गया. मेरे दादाजी सिद्धप्पा और दादी सिद्धवा ने मेरे पिताजी लक्ष्मण को जन्म (1924 मे) जनम दिया. मेरे पिताजी बडे, उनको 2 भाई एक बहेन. बचपन मे मेरे दादाजी सिद्धप्पा और दादी सिद्धवा चल बसे. घर कि जिम्मेदारी पिताजी पर आयी. 14 – 15 साल के थे, पैर को बडी चोट लगी. अपने 2 छोटे भाई और बहेन को नौनीहाल छोडकर बेलगाम सिविल इस्पिताल पहुचे. मर्ज बडते गया, बीमार पिताजी को इस्पिताल के बाहर दूर रोड पर फेक दिया. रास्ते से जाते कर्नल बलबीर सिंग ने उठाया, पाला पोसा. घर – परिवार समाज से उब चुके पिताजी 8 साल गांव वापस नही गये. कर्नल बलबीर सिंग के साथ सिविल मिलिट्री में कार्यरत थे. 1947 मे भारत आझाद हुवा. खडकी अँम्यूनेशन फँक्टरी मे पिताजी को मजदूर कि नौकरी दिलाकर कर्नल बलबीर सिंग अपने मुल्क पंजाब मे चले गये. दोस्तसाथी पिताजी की शादी बात करने लगे. पिताजी को तब गांव  याद आया. 1952 मे गांव वापस आये. बहेन गुजर चुकी थी. दोनो भाई अनाथ कि जिंदगी जी रहे थे. पिताजी ने वापस घर बसाया. बिरादरी के लोग शादी ब्याह के लिये कन्या देने तयार नही थे, इतना अक्कीसागर परिवार बदनाम हुवा था. हमारे गाव का कौजलगी परिवार तयार हुवा. बचपन में माता - पिता गुजरने के बाद उनके ही घर मेरे पिताजी नौकरी - काम किया करते थे. मंझले नाना के साथ मेरे पिताजी भेड़ पालन करते थे. मंझले नाना की बात को मानकर मेरे नाना उद्द्प्पा जो सबसे बड़े थे, उन्होंने (1954) अपनी बेटी गंगा का हाथ पिताजी के हाथ में दिया. 1956 में हमारा जन्म हुवा. मेरी जन्मभूमि खमरिया जबलपुर - मध्यप्रदेश. मातृ - पितृ भमि बेलगाम - कर्नाटक. और कर्मभूमि महाराष्ट्र. जबलपुरका जन्म, माता को हिंदीमें माँ बुलाता था. पुना के पवना नदी के किनारे बसे फुगेवाडी गांव  में  बचपन बिता. मारूती मंदिर में शालेय शिक्षा शुरू हुयी. पाठशाला का नाम ही जीवन शिक्षण मंदिर था. खडकी के आलेगांवकर हाईस्कूल में माध्यमिक शिक्षण हुवा. नेस वाडिया कॉलेज - पुणे कॅम्प से बीकॉम, (उम्र के 20 वे साल में ) और एमकॉम हुवा. पूर्ण निरक्षर दादाओं तथा नानाओं के परिवार से मै पहला मॅट्रिक, पहला ग्रैज्यूएट  और मास्टर ग्रैज्यूएट भी. उसी वक्त मुंबई में बँक में नोकरी भी मिली. एमकॉम की  डिग्री और रिझर्व बँक में नौकरी जुलै 1979 (उम् के 22वे साल में) मिली. दो साल  के अंदर 15 मई 1981 में छोकरी मिली, शादी हुयी. फिर भी मै अशांत और परिवार मुझसे अस्वस्थ था. नौकरी मुंबई में घर पूना में. सवेरे 6 बजे सिंहगड एक्सप्रेस से कामपर जाता था और रात के 9 बजे डेक्कन क्विन से घर आता था. इस कार्यकाल मे 3 साल कामपर नही था. संपूर्ण सेवा कालमे 4 साल कामपर नही गया.  

मेरी पत्नी सुनंदा. इसी साल 15 मई 2020 को हमारी शादी को 39 बरस पूरे हुये. माता - पिता ने जनम दिया. आप्त - परिवार ने  संभाला. मित्र - दोस्तोंने साथ दिया. हम पती - पत्नी के जीवन मे दो फुल खिले. आगे चलकर नात - नातीन, इन दो फूलों से हमारा चमन और खिल उठा. 2016 के दिसम्बर में 37 साल 6 महीने नोकरी करके सेवामुक्त हुवा. उसको भी अब 3 साल हुये. मैंने एक स्वप्न देखा था, वो 2014 में पूरा हुवा. अपना नेता और अपना पक्ष ये वो स्वप्न था. सपना पूरा होने से कुछ  समाज ऋण वापसी मै कर सका, इससे मैं समाधानी हूं. शादी के बाद भी मेरा शोध - बोध चालू था. 1984 में कांशीराम मिले. थोडा स्थिर हुवा, लेकिन शांत नही. वाचन - लिखना चालू था.  मै 8 वी कक्षा में था, तब पढा था. Times of India समाचार पत्र में विश्व के एक श्रेष्ठ आणि ज्येष्ठ कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण (बाल ठाकरे उनके विद्यार्थी) उनका ये वाक्य था. Your best art yet is to be drawn... इससे मेरा शोध निरंतर बना था. इसी कड़ी मे Those who can see invisible can do impossible... इस विचार वाक्यसे मुझे तंत्र मिला. कांशीराम जी 1984 में मिले और उसके दस  साल बाद 30 जनवरी 1994 के दिन यशवंतसेना प्रमुख जानकर महादेव मुझे मिले. मुझे यशवंतसेना का महासचिव बनाया गया. यशवंत नायक मासिक का  मैं कार्यकारी संपादक बना. प्रजा समाज को राजा समाज और वाचक समाज को लेखक समाज बनाने का लक्ष्य लेकर यशवंतसेना प्रमुख़ आणि यशवंत नायक संपादक महादेव जानकर के  नेतृत्व में काम चालू किया. 2003 में राष्ट्रीय समाज पक्ष का जन्म हुवा. इस लंबे संघर्ष यात्रा को 14 जनवरी 2014 के दिन लक्ष्य की ओर बढने का रास्ता मिला. मकर संक्रात्री का दिन था. रासपा आणि महादेव जानकर के लिये वो सत्ता संक्रमण दिवस साबित हुवा. मा. महादेव जानकर  इनके  त्याग व कार्य ओर कार्यकर्ताओं के निष्ठा व कार्य के बलबूते राष्ट्रीय समाज पक्ष सत्ता मे भागीदार बना. मेरा स्वप्न पूरा हुवा.

इस कुरुक्षेत्र में महादेव जानकर और उनके कार्यकर्ता लढे. उनके कार्य को फल मिला. मेरा जमीनी कार्य कम था. मैने एक रोल किया. उसे मै रोल ऑफ इंटेलेक्चुअल क्लास कहुंगा. बुद्धीजीवी वर्ग से ये रोल अपेक्षित है. क्षमता तथा आवश्यकता के अनुसार मै उसे अंततक निभाते रहूँगा.  सत्ता, सम्पत्ति और सन्मान के लिये सारा संघर्ष है. मा. महादेव जानकर आणि राष्ट्रीय समाज पक्ष इन्होंने मिलकर मुझे दिया हुवा, राष्ट्रीय समाज पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्षपद मेरे लिये एक अनमोल भेट और सन्मान है. मेरे लिये सबसे बड़ी   संपत्ति और पद है. जिस मंजिल को हमने लक्ष्य किया था, उस रास्तेपर अपना समाज - राष्ट्रीय समाज चल रहा है, ये मैं देख रहा हूँ. इसका मुझे  सर्वाधिक समाधान है. इसके अलावा अब जो भी काम मुझसे होगा,  उसे मैं  बोनस समझूंगा. मै सिध्दप्पा. हम माता गंगुबाई, पिता लक्ष्मण, 6 बहने, पत्नी तथा एक पुत्र, एक कन्या आदि आप्त परिवार. हम सब अलग - अलग समाज; धनगर, ओबीसी, आदिवासी, दलित, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, मुस्लीम, इसाई. सिख, बौद्ध, जैन. ज्यू आदि सब मिलकर बने भारतीय समाज को हम राष्ट्रीय समाज मानते है.

स्वप्न मेरा था. इच्छा और लगन मेरी थी. तो ये मेरा स्व-आर्थ होता. वो पुरा हुवा. जबलपूर सें फुगेवाडी, खडकी, पुणे, बेलगाम, मुंबई तक पहुंचा. सीधा रास्ता कभी चला नही.  अपना खुद का रास्ता ढूंडा और चल पड़ा. इसलिए रास्ता टेडामेडा था, कठिनाईओं से भरा था. लेकिन अनेक नेक साथी मिले. सफर मुस्किल था, लेकिन सफल रहा. पाचवी कक्षा में जोशी मैडम ने स्नेह - प्रेम के साथ अंग्रेजी सिखाया. पुरंदरे सर ने गणित में प्रवीण किया. मित्र नितीन जुन्नरकर बहोत होशियार था, ब्राह्मण था, नितिन या मै स्कुल मे पहले - दूसरे नंबरपर रहते थे.  नेस वाडिया कॅालेज के प्राचार्य नूलकर जी ने (ब्राह्मण) मानसिक - बौद्धिक के साथ आर्थिक सहयोग दिया. सर्व स्तर के, जाती – धर्म के मित्र थे. इस कारन सर्व-कोनी और  सर्व-अंगीन चर्चा होती थी. इन सब से कुछ मिला, ये सब मेरे गुरु ही तो थे. यहाँ मुझे जीवन शिक्षण मिला. रिजर्व बँक तो मेरे लिये एक महाविद्यालय साबित हुवा. मेरे युग के महापुरुष कांशीराम मिले. महादेव जानकर नामका वनफुल मिला, बादमे वो बहुमोल रत्नफुल साबित हुवा. सफर एक मुकाम तक पंहुचा. (लेकिन पार्टी का सफर जारी है, मंजिल अभी बाकि है...) मुझे शांत करनेवाला एक सपना पूरा हुवा. इसका श्रेय मेरी पत्नी - सुनंदा को दूंगा. मेरे दो बच्चे पुत्र सुदर्शन आणि कन्या वृर्षाली को दूंगा. मेरे पत्नीने घर संभाला, बनाये रखा, हम दोनोंकी जिम्मेदारी अकेलीने निभाया. मैंने देखा - मेरा सपना पूरा हो पाया. 

मेरे माता – पिताने मुझको लेकर कुछ सपने देखे होंगे. उसके लिये मै अपना वक्त दे नहीं सका. उसको लेकर एक दुःख मेरे अन्तर्मन में रहता है. मैं जो कुछ कर रहा हूँ, मेरी माता कभी समझ नहीं पायी. माँ को सिर्फ मेरी और मेरे परिवार की फ़िक्र थी. पिताजी ने मुझे कभी टोका नहीं. मेरी माता को वो अपनी तरह से और तरफ से शायद समझाते रहे. मेरे बेटे सुदर्शन की शादी वो देखना चाहते थे. वर्ष 2016 मेरे सेवाकाल का अंतिम वर्ष था. उसी वर्ष मेरे बेटे की शादी हुयी. मेरे पिताजी का तबका फोटो उनके 3 रे स्मरण दिवसपर मैंने स्टेटस में डाला था. पिताजी गुजर गये. माताजी कि छत्रछाया और आशीर्वाद अब भी मेरे- हमारे साथ है. आज जो कुछ भी हूँ, मेरे माता – पिता के बदौलत हूँ. मै अशांत क्यों था ? मै शिक्षित था. महात्मा फुले को पढा था. विद्या के अभाव में बहुसंख्यांक राष्ट्रीय समाज का अनर्थ हुवा और सत्ता के अभाव में सकल गुण प्रभावहीन होने की महात्मा फुले ने दी हुई शिक्षानीति को मै समझ चुका था. अनपढ़ होने और विद्या के अभाव में दादाओ ने जमीन, जायदाद, नाम, शोहरत खोया था, ये मैं ने जाना था. नानाजी गांव में सबसे अमिर थे. मामाओं में जमीन - जायदाद को लेकर कोर्ट,  कचहरी हुयी. उनको भी जमीन, जायदाद और शान्ति खोते मैंने देखा था. पहिली कक्षा में था, प्रेजेंसी के वक्त मास्टर जी ने मुझे मांजरेकर करके पुकारा. घर आया; माताजी को पुछा. मेरा - हमारा नाम कया है. अनपढ़ माँ ने सही नाम – अक्कीसागर बताया. मेरे पिताजी मजदूर थे. अनपढ़ थे. नौकरी के रजिस्तरी में उनका गलत नाम लगा था. कोर्ट - वकालत करके उसे अक्कीसागर कराया. मेरे पिताजी लक्ष्मण ने अपना गांव छोड़ा. बेलगाम से चलते, देशभर घुमते, पूना - जबलपुर करते वापस पूना आये. अंत में गांव वापस आये. गांव में ही उनका इंतकाल हुवा. छटी कक्षा के बाद मै गाव में कभी हप्ताभर भी नही रह पाया था. 2016 में रिटायर होने के कारन मुझे 2017 के जून महीने में बीमार पिता की सेवा करने का मौका मिला था. मेरे सामने पिताजी ने जान छोड़ी. बहोत दुःख हुवा, लेकिन मेरे मन को थोडा सकुन मिला- राहत मिली. मेरे पिताजी ने गांव छोड़ा था. और उसके कारन मै यहाँ तक पंहुचा, कुछ कर पाया. ये सब लिखने और कहने का तात्पर्य "माता से जगदर्शन, पिता से पहचान" है, यही सत्य है. और इसके बिना सत्य और कया है...?

अभिव्यक्ति
कोशिश: मन से मन की ओर...
श्री. एस. एल. अक्कीसागर
संस्थापक अध्यक्ष, ऑल इंडिया रिझर्व बैंक ओ.बी.सी एम्पलॉइज वेलफेअर असोसीएशन
संस्थापक अध्यक्ष, रिजर्व बैंक एस.ई.बी.सी. / ओ.बी.सी एम्पलॉइज असोसीएशन मुंबई
कार्यकारी संपादक – विश्वाचा यशवंत नायक (29 सितम्बर 1994 से)
लेखक – सत्यशोधक दंडनायक - संत कनकदास (31 मई 2005)  
सदस्य, शेफर्ड इंडिया इंटरनॅशनल, दिल्ली
सदस्य, श्री कगिनेली महासंस्थान कनक गुरुपीठ, कर्नाटक
राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय समाज पक्ष (5 जनवरी 2018 से) 
मो. :9969608338 ईमेल : sidsagar1956@gmail.com  : मुंबई 02.07.20
(आज 2 जुलाई 2020, आज ही के दिन 41 साल पहले मैंने 1979 रिजर्व बैंक जॉइन की थी).

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