Friday, December 25, 2020

स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक पेरि‍यार रामस्वामी नायकर

 ब्रिटिश भारत मे आरक्षण के जनक तथा

स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक

पेरि‍यार रामस्वामी नायकर



तब हिन्दुस्थान, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र स्टेटों मे बटा था. ब्रिटिश भारत पर ब्रिटिशोंकी पुरी हुकूमत थी. जबकी स्वतंत्र स्टेटोंपर राजों -नवाबोंका राज था. छत्रपती शाहू महाराज ने अपने कोल्हापुर स्टेट में 26 जुलाई 1902 को आरक्षण लागू किया था. मैसोर के वडियार राजाने मैसोर स्टेटमें 1921 में आरक्षण लागू किया था. लेकिन ब्रिटिश भारत में जिनके कारण आरक्षण लागू हुवा, उनका नाम है, पेरियार रामस्वामी नायकर. जिसके तहत न सिर्फ ओबीसीं को आरक्षण मिला, बल्कि दलित, मुस्लिम, ख्रिश्चन और ब्राह्मणों को भी आरक्षण मिला था. लेकिन स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण को धोका हुवा. वो पेरियार रामस्वामी नायकर ही है, जिनके कारण स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण का संरक्षण हुवा. अथ: पेरियार रामस्वामी नायकर को ब्रिटिश भारत में आरक्षण  के  जनक और स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक कह सकते है.


ओबीसीओं भूलो मत... आरक्षण लाभार्थिओ भूलो मत...

पेरियार रामस्वामी नायकर को भूलो मत...

पेरियार रामस्वामी नायकर ही है, जिनकी बदौलत 

ब्रिटिश भारत मे आरक्षण लागु है... 

स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण सुरक्षित है...

 

जन्म-17 सितंबर 1879 : मृत्यु –24 दिसंबर 1973

पेरियार रामस्वामी नायकर के 47 वे (24 दिसंबर 2020) स्मृतिदिन के अवसरपर 

तमाम ओबीसी आरक्षण लाभार्थिओकों की ओरसे उन्हे,

विनम्र अभिवादन!


ब्रि‍टीश भारत में शासन चलाने के लि‍ए अंग्रेज अधि‍कारि‍यों को बड़ी तादाद पर तैनात कि‍या गया था. उसके बावजूद प्रशासकीय कार्य में जादा लोगों की जरुरत महसूस हुयी. ब्रि‍टीश शासन में भाषा तथा अन्य मुद्दों को लेकर समस्या भी पैदा होने लगी. ब्रि‍टीश प्रशासन में नोकरि‍यों में भारतीय लोगोंकी जरुरत महसूस हुयी. तब नोकरि‍यों में छोटे पदोंपर भारतीय लोगोंकी भरती चालू की. ब्रि‍टीश प्रशासन में नोकरि‍यों में आरक्षण की मांग, भारत में सबसे पहले ब्राह्मण वर्ग ने की. (ब्रि‍टीश प्रशासन में नोकरि‍यों में शुद्र –अतिशुद्रोंके आरक्षण की मांग, भारत में सबसे पहले महात्मा जोतीराव फुले ने की थी) तब ब्राह्मणेतर वर्ग को (अब्राह्मण) लोकसंख्या के अनुसार प्रशासन में प्रति‍नि‍धि‍त्व मि‍ले, इसलि‍ए पेरि‍यार रामस्वामी नायकर ने जन्म (17 सि‍तंबर 1879) मुवमेंट चलायी,बड़ा संघर्ष कि‍या. उसके परि‍णामत: 1 एप्रिल 1927 में मद्रास पेसींडेंसी के असेम्ब्ली (मद्रास राज्य/प्रांत मे केरल, कर्नाटक, आंध्र, ओरिसा तथा तामि‍लनाडू का वि‍शाल क्षेत्र व्याप्त था) एक कम्युनल जी.ओ.नि‍काला गया। जिसके द्वारा 12 आरक्षित जगहों की रोस्टर (बिंदु नामावली) निश्चित की गयी. उसमें ओबीसी - 5, ख्रिश्च न - 2, मुस्लि‍म - 2, अस्पृश्य - 1 और ब्राह्मण - 2, जगह दि‍ये गये. डॉ.पी.सुब्बरायन के मंत्रि‍मंडल में शामि‍ल पेरि‍यार रामस्वामी नायकर के साथी श्री. मुदलीयार कॅबि‍नेट मंत्री थे, उन्होंने इस कायदे को लागू कि‍या. इस तरह भारत की नोकरीओं में पहली आरक्षण नि‍ती सरकारी आदेश द्वारा लागू हुयी.  इससे ओबीसीओं को सबसे जादा 5 जगह प्राप्त हुए थे.


भारत का नोकरीओं मे पहला आरक्षण  : 

मद्रास पेसींडेसी कम्युनल जी.ओ. 1 एप्रिल 1927

12 आरक्षित जगहो का रोस्टर बिंदू

ओबीसी - 5 जगह,   ब्राह्मण - 2 जगह, 

मुस्लीम - 2 जगह, ख्रिश्चरन- 2 जगह, अस्पृश्य- 1 जगह


वर्ष 1918 तक ब्रिटिश भारत पर ब्रि‍टीशों का शासन तथा प्रशासन क्षेत्र में संपूर्ण नि‍यंत्रण था. भारतीयों को शासन- प्रशासन में शामि‍ल करने का नि‍र्णय ब्रि‍टीश राजकर्तांओं ने 1919 में लि‍या. मान्टेग्यु चेम्स फोर्ड  रि‍पोट द्वारा सि‍ख, मुस्लि‍म, ख्रिश्च न, अँग्लो इंडि‍यन, युरोपि‍अन, ज्युर और अश्पृरश्या को स्वतंत्र समाज का (कम्युनि‍टीका) दर्जा देकर राजनैति‍क आरक्षण (प्रति‍नि‍धि‍त्व) नि‍ती लागु हुयी. भारत के प्रधानमंत्री रॅम्से मॅकडोनाल्ड ने 17 अगस्त 1932 में कम्युनल अवार्ड अंतर्गत अस्पृश्यों के लि‍ए स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र घोषि‍त कि‍या. गांधी-आंबेडकर के दरम्यान हुये पुणे करार द्वारा उसे संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया. सि‍ख, मुस्लि‍म, ख्रिश्च न, अँग्लो इंडि‍यन, युरोपि‍यन, ज्युख तथा अस्पृश्यों को दि‍या गया कम्युनल अवार्ड राजनैतिक आरक्षण (प्रति‍नि‍धि‍त्व) था.

स्वतंत्र भारतमें नये राजघटना के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसीमे लागु हुवा, ओबीसी आरक्षण रद्द होनेका हायकोर्ट ने आदेश निकाला. उसके खिलाप मद्रास राज्यमे बड़ा आन्दोलन किया गया. परिणामत: केन्द्रीय सरकारको मजबूर होकर भारतीय राजघटनामें पहेला बदलाव का प्रस्ताव पास करना पड़ा और ओबीसी आरक्षण स्वतंत्र भारत में पुन: एक बार लागु हुवा. भारतका जी. ओ. द्वारा पहेला आरक्षण मद्रास प्रेसीडेंसी में लागु हुवा. जिसके मूल शिल्पकार थे,पेरियार रामस्वामी नायकर ! जिनके चलते स्वतंत्र भारतमें ओबीसी आरक्षण सुरक्षित हुवा.उस महापुरुषका नाम है, पेरियार रामस्वामी नायकर ! समाजविघातक, कालबाह्य, पुराने हुए मान्यरताओं पर पेरियार रामस्वारमी नायकर जैसा कठोर आघात शायद ही किसी और ने किया होगा. सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, महिला तथा युवा वर्ग के क्षेत्र में पेरियार का कार्य केवल अतुलनीय कहा जा सकता है. लेकिन ब्राह्मणेतर समाज को नोकरी तथा शिक्षण क्षेत्र में आरक्षण (प्रतिनिधित्वत) प्राप्त् कर देने का पेरियार रामस्वा्मी नायकर का कार्य भारत के सामाजिक तथा राजनैतिक इतिहास में एक महत्व‍पूर्ण पर्व माना जाए ऐसा है. 

ब्राह्मणेतर समाज के प्रतिनिधित्वव के लिए पेरियार रामस्वाेमी मिटिंगज्, सभाओं द्वारा जनमत तयार कर रहे थे. कांग्रेस पार्टी ने खुद ब्राह्मणेतर समाज के लिए आरक्षण निती का पुरस्कामर करना चाहीए, ऐसी मांग गांधी तथा कांग्रेस के अनुयायी के नाते पेरियार रामस्वाकमी नायकर कर रहे थे. इसी मांग को लेकर पेरियार रामस्वागमी नायकर के प्रयत्नेवश मद्रास राज्यक के वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन में (थिरुनेलवेल्लीर - 1920) पहला आरक्षण रिझोल्युकशन को ठुकरा दिया गया. उसके बाद मद्रास राज्य  के हर वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन में आरक्षण रिझोल्युुशन (1921 - तंजावर), (1922 - थिरुवर), (1921 - सेलम), (1924 - थिरुवण्णाणमलाई (, 1925 कांचीपुरुम ) में लगातार रखा गया, लेकिन हर बार उसे ठुकरा दिया गया. 1924 के वार्षिक अधिवेशन में मद्रास प्रांत कांग्रेस के अध्यएक्ष रामस्वाामी नायकर ही अध्य क्ष थे. उन्होंाने अपने अध्येक्षीय भाषण में जाती आधारित आरक्षण (प्रतिनिधित्व ) की जरुरत तथा महत्वह को विस्तादर से तर्क के साथ पेश किया. उसके बावजुद आरक्षण रिझोल्युेशन को मंजुरी नहीं मिली. 

तब हिन्दुस्थान, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र स्टेटों मे बटा था. ब्रिटिश भारत पर ब्रिटिशोंकी पुरी हुकूमत थी. जबकी स्वतंत्र स्टेटोंपर राजों -नवाबोंका राज था. छत्रपती शाहू महाराज ने अपने कोल्हापुर स्टेट में 26 जुलाई 1902 को आरक्षण लागू किया था. मैसोर के वाडियार राजाने मैसोर स्टेटमें 1921 में आरक्षण लागू किया था. लेकिन ब्रिटिश भारत में जिनके कारण आरक्षण लागू हुवा, उनका नाम है, पेरियार रामस्वामी नायकर. जिसके तहत न सिर्फ ओबीसीं को आरक्षण मिला, बल्कि दलित, मुस्लिम, ख्रिश्चन और ब्राह्मणों को भी आरक्षण मिला था. लेकिन स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण को धोका हुवा. वो पेरियार रामस्वामी नायकर ही है, जिनके कारण स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण का संरक्षण हुवा. अथ: पेरियार रामस्वामी नायकर को ब्रिटिश भारत में आरक्षण  के  जनक और स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक कह सकते है.


1925 के कांचीपुरम कांग्रेस वार्षिक अधिवेशन में टी.व्हीओ. मुदलियार सभाध्यिक्ष थे. आरक्षण नीती के मंजूरी के लिए उन्हों ने 30 मतों के आवश्यीकता होने की बात की. रामस्वारमी नायकर ने तुरंत 50 मतों को इकठ्ठा किया. आरक्षण के पक्ष में बहुमत सिध्दश हुआ. लेकिन कुछ लोगों ने शोर मचाकर आरक्षण के रिझोल्युिशन को नामंजूर होने की घोषणा की. इससे पेरियार रामस्वाछमी नायकर महासंतप्तक हुये. कांचिवरम अधिवेशन को बिचोबीच छोडकर अपना निषेध व्येक्त् करते हुए रामस्वाामी नायकर तथा उनके साथी अधिवेशन से बाहर चले आये. केरल के वायकोम मंदीर सत्याकग्रह और गुरुकूलम प्रकरण में नाराज / संतप्तह रामस्वाहमी नायकर ने कांग्रेस का साथ नहीं छोडा था. लेकिन आरक्षण मुद्देपर कांचिपुरम अधिवेश्नस का सभात्या ग करनेवाले पेरियार रामस्वाेमी नायकर ने न केवल गांधी तथा कांग्रेस का त्यापग किया. बल्कि कांग्रेस का सर्वनाश करने की भिष्म प्रतिज्ञा की थी.

पेरियार रामस्वाभमी नायकर ने बहोत सारे क्षेत्रों में कार्य किया. लेकिन ब्राह्मणेतर समाज को नोकरी, शिक्षण तथा प्रशासकीय क्षेत्र में प्रतिनिधीत्वे / भागीदारी दिलाने के लिए जाती आधारित आरक्षण नीति का पुरस्कातर करने में / उसका आग्रह करने में पेरियार रामस्वाीमी नायकर सबसे आगे थे. पेरियार का यह सबसे बड़ा कार्य था. मद्रास प्रांत में 1 अप्रेल 1927 में कानून द्वारा लागु हुआ. आरक्षण (ओबीसी का) रामस्वारमी नायकर के अथक संघर्ष का “फलीत” था.

पेरियार रामस्वाीमी नायकर की जाती कोनसी !

पेरियार रामस्वाीमी नायकर की  जाती कोनसी है ! इसके बारेमे संभ्रम है. विकीपीडिया में उनको बलिजा/ बनिजगा/ बनिया जातीके बताया है. नायकर होने के कारण नायडू/ नायकर जातीसे भी जोड़ा गया है. विजयनगर साम्राज्य में जाकर उन्हे क्षत्रिय भी बताया गया है. चातुरवर्णाधीष्टित जाती व्यवस्था के सक्त खिलाफ होने कारण पेरियार रामस्वा्मी नायकर ब्राह्मण वर्चस्व के कठोर विरोधक रहे. वायकोम सत्याग्रह के अग्रणी पेरियार ही थे. ब्राह्मण – बनिया के खिलाफ उनका संघर्ष चला.चातुरवर्णाधिष्टित जाती व्यवस्था में से शूद्र –अति शूद्र जाती वर्ग के लिए उनका संघर्ष चला. ईश्वर नहीं, आत्मा नहीं, जाती नहीं, ये उनकी विचार त्रिसुत्री थी. इसलिए नायकर-त्व को त्याग कर वो पेरियार रामस्वामी कहलवाने लगे थे. उत्तर भारतमे पेरियार रामस्वादमी नायकर को धनगर जातीका मानते है, पेरियार रामस्वालमी नायकर की प्रतिमा लेकर वे सामाजिक मूवमेंट चला रहे है.  कर्नाटकमे उन्हे नायकर/बेडर/रामोशी जातीका मानते है, पेरियार रामस्वाजमी नायकर की प्रतिमा लेकर वे सामाजिक मूवमेंट चला रहे है.  जबकी तमिलनाडूके धनगर/ कुरुम्बन पेरियार रामस्वाीमी नायकर को धनगर जातीका नहीं मानती. उसी तरह महाराष्ट्र के नायकर/बेडर/रामोशी पेरियार रामस्वाधमी नायकर को नायकर/बेडर/रामोशी जातीका नहीं मानती. पेरियार रामस्वानमी नायकर जातीसे नहीं, अपने कार्य – कर्तृत्वसे महापुरुष -पेरियार बने थे. जातीका अभिमान ठीक है. किसी महापुरुष के अपने जातीके होने से गौरवान्वयित होना भी ठीक है. लेकिन महापुरुष अगर अपनी जातीका होनेसे ही उनको माना जाना, क्या ठीक है ? किसी भी महापुरुष –पेरियार की पहचान जाती/वर्ण/वंश/धर्म/ भाषा/प्रांत/प्रदेश/देश से नहीं, उसके कार्य – कर्तृत्वसे होती है, होनी चाहिये. पेरियार रामस्वाणमी नायकर की लढाई, आत्मसन्मान की लढाई थी. मूलत: मानवता के लिए उनका संघर्ष था. इन मूल मानवी जीवन मूल्योंके के खिलाफ जो कार्य कर रहे थे, उनके विरुद्ध उन्होने जीवनभर संघर्ष किया. इस बात को समझने से ही पेरियार रामस्वाजमी नायकर का चरित्र हम जान सकते है. पेरियार रामस्वाणमी नायकर के चरित्र को जान कर ही उनको मानने मे हम सब की भलाई है. 


15 अगस्तस 1947 को भारत स्वकतंत्र हुआ. स्वेतंत्र भारत का संविधान बनाया गया. अनुसूचित जाती (15) और अनुसूचित जमाती (7.5%) आरक्षण भारतीय संविधान में शामिल करने में डॉ. बी. आर. आम्बे5डकर सफल हुए. 52 प्रतिशत ओबीसीओंको आरक्षण वंचित रखा गया. संविधान के 340 कलम के अनुसार ओबीसीओं की (सोशल अॅण्ड  एज्यु केशनली बैकवर्ड क्लाास की) सूचि बनाने का कार्य भारत के राष्ट्रापति को तथा सरकार को संविधानतः सौंपा गया. (मद्रास प्रांत में बैकवर्ड क्लावस की (ओबीसी) सुची तैयार थी. कोल्हासपुर संस्था न में 1902 से तथा मैसोर संस्था्न में 1924 से ओबीसीओं की सुची तैयार थी.) भारत के संविधान द्वारा एस.सी. तथा एस.टी को स्पेष्ट  तथा निःसंदीग्ध् ‍ स्वीरुप में आरक्षण लागु हुआ था. लेकिन ओबीसीओं के साथ वैसे नहीं हुआ था.


स्वितंत्र भारत में भारत का नया संविधान लागु हुआ. संविधान के 16(1) के नुसार `सबको समान अवसर' इस तत्व  का आधार लेते हुए, 1927 के आरक्षण विरोध में मद्रास हायकोर्ट में (1950) याचिका दायर की, मद्रास हायकोर्ट ने (भारत के नये संविधान के पृष्ठरभूमि पर) मद्रास असेम्बेली का दिनांक 1 अप्रेल 1927 का सरकारी (आरक्षण) अध्याादेश रद्द होने का आदेश दिया. पेरियार और उनके साथियों ने इसके खिला'फ सुप्रिम कोर्ट में अपिल की. परंतु सुप्रिम कोर्ट ने भी मद्रास हायकोर्ट के निर्णय को कायम किया. इस निर्णय से संपुर्ण मद्रास प्रांत में खलबली मच गयी. असंतोष निर्माण हुआ. पेरियार रामस्वाउमी नायकर का क्रोधाग्नीन भडक उठा. भारत के नये संविधाननुसार एस.सी./ एस.टी. आरक्षण निती मद्रास के साथ संपूर्ण भारत में लागु हुई थी. लेकिन सुप्रिम कोर्ट के आदेशानुसार ओबीसी का आरक्षण खतरे में आया था. सुप्रिम कोर्ट के इस निर्णय के खिला'फ रामस्वाेमी नायकर ने सिंहगर्जना की. 13 अगस्तर 1950 को मद्रास शहर में आयोजित प्रचंड सभा में पेरियार रामस्वाुमी नायकर के मुख से क्रोधाग्नीन प्रकट हो रहा था. भारतीय जनतंत्र तथा प्रशासन और न्यााय व्य वस्थाम पर से विश्वारस उड जाने की बात करते हुए ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर स्वातंत्र राज्यव की मांग किये जाने की घोषणा रामस्वानमी नायकर ने की.

पेरियार ने कहा,"The present agitation is not agitation mere communal Government Order (G.O.). It will lead us to agitate for the separation of Dravidnad." पेरियार रामस्वाtमती नायकर तथा उनके साथियों ने संपूर्ण मद्रास प्रांत में आंदोलन खड़ा किया. पेरियार के इस महाआंदोलन तथा सिंहगर्जना के सामने भारत सरकार को झुकना पडा. भारत के संविधान में पहला अमेंडमेंट करना पडा. संविधान अधिनियम 1951 के अनुसार सेकशन 15(4) के द्वारा नोकरीओं में तथा शिक्षण में ओबीसीओं के संविधानात्म क आरक्षण के अधिकार को मान्य ता मिेली. ओबीसी का आरक्षण बच गया.

ब्राह्मणेतर जाती समुह / वर्ग के न्याेय्य प्रतिनिधित्वओ का मुद्दा पेरियार रामस्वाषमी नायकर के मिशनका सबसे बड़ा, महत्व पूर्ण तथा अहम अजेंडा था. इस आरक्षण को लेकर पहले पेरियार रामस्वारमी नायकर ने कांग्रेस को छोडा था और बादमें ओबीसी आरक्षण को लेकर भारतीय संघराज्यय से बाहर जाने की घोषणा की थी. इससे, इस मुद्दे पर पेरियार कितने संवेदनशील थे, इसका स्परष्टष दर्शन होता है.

ब्रिटीश राज्यथकर्ता चले गये. अॅंग्लो इंडियन को आरक्षण देकर चले गये. मुसलमानों को पाकिस्तागन-बांगला देश देकर चले गये. बावजूद उसके मुसलमानों को भारत में भी रखा गया. सिखों के लिए अलग पंजाब राज्य  बनाया. अनुसूचित जाती / जनजाती को राजनैतिक (लोकसभा, विधानसभा), नोकरीओं में (प्रशासन में), शिक्षण क्षेत्र में आरक्षण दिया गया. लेकिन 52 ओबीसीओं को, बहुजन हिंदू समाज को प्रतिनिनिधित्वं / आरक्षण वंचित रखा गया. परिणामतः ओबीसी जीवन के हर क्षेत्र में "सबसेन जादा पिछडा गया वर्ग " बनकर रह गया. रामस्वाामी नायकर के कार्य फलतः तामिलनाडू तथा कर्नाटक राज्य" में सुप्रिम कोर्ट के आरक्षण में 50 प्रतिशत सिलींग के लागु न होने से ओबीसीओं को आरक्षण का थोडासा 'फायदा मिला. इसी क्षेत्र से अंतरराष्ट्रीीय दर्जे का ब्रेन बैंक ओबीसी ने भारत तथा विश्वाभर को दिया है.

उत्तटर भारत में पिछडा वर्ग आंदोलन में नया नेतृत्वे खड़ा हुआ है. महाराष्ट्रर में ओबीसी नेतृत्व  खड़ा हो रहा है. मुलायम, लालू, भुजबल जैसे नेतृत्वै को मान्यतता मिल रही है. लेकिन ओबीसीको आज तक न्या़य नहीं मिला है. आरक्षण का लाभ नहीं मिला है. उच्चे शिक्षण में ओबीसी आरक्षण आज भी खतरे में है. Privatisation, Liberalisation and Globalisation निती के चलते आरक्षण निती का सही अर्थ नष्टi हुआ है. ओबीसी नेतृत्वआ को (सामाजिक तथा राजनैतिक) ओबीसी आरक्षण लागु कर लेने में आजतक सफलता नहीं मिली है. इस पृष्ठओभुमीपर पेरियार रामस्वांमी नायकर के ओबीसी आरक्षण संबंधी कार्य को देखने की / समजने की जरुरत महसूस होती है. नोकरी, शिक्षा तथा सत्ताआ में (शासन, प्रशासन,शिक्षण क्षेत्र में) प्रतिनिधित्वी, ये सामाजिक मुवमेंट का सबसे बड़ा महत्वंपूर्ण पहेलु है. उसे प्राप्तम करने के उद्देश्य, से पेरियार रामस्वा)मी नायकर, अलग राज्ये की बात करने को तैयार होते है. इस बात से पेरियार खुद को राष्ट्रकविरोधी माने जाने के खतरे को स्विकारने को तैयार हुये थे. स्वनसन्माेन तथा सामाजिक न्यायय तथा प्रतिनिधित्वि के लिए पेरियार कितने आग्रही तथा कर्मट थे, इसका भी दर्शन होता है.

देश में तथा विदेश में जाकर समाज जागृती का कार्य करनेवाले पेरियार रामस्वाटमी नायकर का निर्वाण 95 वे वर्ष के वयोकाल में 24 दिसंबर 1973 को हुआ. 1987 के वर्ष में भारत सरकार ने पेरियार के कार्य गौरवार्थ 25 रुपये का पोस्टमल टिकट प्रकाशित किया गया था.

डॉ.बी.आर.आंम्बे डकर का कार्य राष्ट्री य तथा राष्ट्रसव्याापी हुआ. परिणामतः अनुसूचित जाती की मुवमेंट भी राष्ट्र व्यायपी बनी. साथ ही साथ उसका लाभ अनुसूचित / जनजाति को भी मिला. लेकिन, ओबीसी की मुवमेंट राष्ट्ररव्याीपी तथा राष्ट्री य नहीं बनी. इस परिप्रेक्ष्यी में पेरियार रामस्वारमी नायकर का कार्य 52 प्रतिशत ओबीसीओं के लिए मार्गदर्शक दिपस्तंतभ बन सकता है.

ओबीसी के साथ अन्या वर्ग को भारत का पहला नोकरीओं में आरक्षण प्राप्त  कर देने वाले (कम्युिनल जी.ओ. 1 अप्रेल 1927) पेरियार रामस्वाहमी नायकर का राष्ट्रीपय तथा राष्ट्रेव्यायपी स्व रुप छुप गया है / छुपाया गया है. द्रविडनाड की माँग, हिन्दी विरोध और अघोर नास्तिकतावाद के कारण शायद पेरियार रामस्वा्मी नायकर की  प्रतिमा उर्वरित भारतमें अलगसी बन गयी थी. पेरियार सरल स्वभाव के थे, बड़े तात्विक थे, तर्कनिष्ट (Rational) थे, मानवता के बड़े समर्थक थे. ढोंग के सक्त खिलाफ थे. शायद इस लिए वे अपनी बात पर अड़िग रहते थे. धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्र के क्रांतीकारी / बंडखोर पेरियार की पहेचान पुरे भारत भर में कम - जादा पायी जाती है. उन्होने देव/ईश्वर के अस्तित्वको नकारा था. धर्मकों नकारा था. पुरुष सत्ताधीष्टित समाज को नकारा था. महिला वर्ग के अधिकार को लेकर वो बहोत ही संवेदनशील थे. शिक्षा को वो सर्वोपरि मानते थे. चातुरवर्णाधीष्टित जाती व्यवस्था के सक्त खिलाफ होने कारण वो ब्राह्मण वर्चस्व के कठोर विरोधक रहे. वायकोम सत्याग्रह के अग्रणी पेरियार ही थे. ब्राह्मण – बनिया के खिलाफ उनका संघर्ष चला. इसलिए पेरियार रामस्वाममी नायकर की प्रतिमा उर्वरित भारतमें अलगसी पड़ गयी. लेकिन ओबीसी आरक्षण के आद्य सेनापती / पायोनियर स्वतरुप पेरियार रामस्वानमी नायकर की पहेचान छुपी हुई है. पेरियार के कारण न सिर्फ ओबीसी को आरक्षण मिला, बल्कि दलित, मुस्लिम, ख्रिश्चन तथा ब्राह्मण को भी आरक्षण मिला. इस तरह पेरियार और आरक्षण का अटुट संबंध है. और उससे भी जादा ओबीसी आरक्षण से पेरियार का संबंध अटुट है.


आज २४ दिसंबर 2020 है.. पेरियार रामस्वामी नायकर का 47 वा स्मृती दिवस है. आवो, हम सब मिलकर उनके कार्य - कर्तृत्व और नेतृत्व का दिलसे गंभीरतापूर्वक  स्मरण करे.  आनेवाले समय मे पेरियार रामस्वामी नायकर जी ने बताये हुये राहपर चले ऐसी शपथ लेते ही. यही उनके प्रती सच्ची श्रद्धांजली होगी...


टिप :उपर्युक्त लेख एस एल अक्कीसागर- प्रेसिडेंट, ऑल इंडिया रिझर्व बैंक ओ.बी.सी एम्पलाइज वेलफेअर असोसीएशन लिखित यशवंत नायक मासिक 2011में सर्वप्रथम प्रकाशित... 


लेखन – संकलन: 

श्री. एस. एल. अक्कीसागर

संस्थापक अध्यक्ष, ऑल इंडिया रिझर्व बैंक ओ.बी.सी एम्पलॉइज वेलफेअर असोसीएशन

संस्थापक अध्यक्ष, रिझर्व बैंक एस.ई.बी.सी. / ओ.बी.सी एम्पलॉइज असोसीएशन मुंबई

कार्यकारी  संपादक – विश्वाचा यशवंत नायक (29 सितम्बर 1994 से)

लेखक – सत्यशोधक दंडनायक - संत कनकदास (31 मई 2005)  

सदस्य, शेफर्ड इंडिया इंटरनॅशनल, दिल्ली

सदस्य, श्री कगिनेली महासंस्थान कनक गुरुपीठ, कर्नाटक

राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय समाज पक्ष (5 जनवरी 2018 से) 

मो. :9969608338 ईमेल : sidsagar1956@gmail.com  : मुंबई 24.12.2020

Wednesday, December 23, 2020

Rashtriya Samaj Paksha National Executive Session -2020

शिर्डीतील राष्ट्रीय अधिवेशनात रासपने केला एक कोटी सदस्य नोंदणीचा निर्धार



रासपच्या सॉफ्टवेअरचे उदघाटन; प्रत्येक राज्यात रासप निवडणुका लढणार 

शिर्डी / राष्ट्र भारतीद्वारा

राष्ट्रीय समाज पक्षाचे राष्ट्रीय अधिवेशन शनिवार दि. १९ डिसेंबर  व रविवार दि. २० डिसेंबर २०२० रोजी शिर्डी साईबाबा नगरीत उत्सहात पार पडले. 'एक कोटी सदस्य नोंदणी' करण्याचा निर्धार राष्ट्रीय अधिवेशनात केला.  महाराष्ट्र विधानसभेत राष्ट्रीय समाज पक्षाचे ५० आमदार व १० खासदार, गुजरात राज्यात २५ आमदार व ४ खासदार, उत्तर प्रदेश राज्यात ३५ आमदार १० खासदार जिंकण्याचा संकल्प रासप केला.

अधिवेशनासाठी राष्ट्रीय समाज पक्षाचे संस्थापक अध्यक्ष 'राष्ट्रनायक' महादेवजी जानकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. एल. अक्कीसागर,  राष्ट्रीय महासचिव कुमार सुशील,  के प्रसन्नाकुमार, राष्ट्रीय संघटक महाराष्ट्र प्रभारी पंडित घोळवे, राष्ट्रीय संघटक बाळकृष्ण लेंगरे, गोविंदराम सुरनर, महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष आमदार डॉ. रत्नाकर गुट्टे, महाराष्ट्र राज्य मुख्यमहासचिव  बाळासाहेब दोडतले, गुजरात प्रदेशाध्यक्ष राजेश आयरे, गुजरात प्रदेशउपाध्यक्ष ऋतुराज शास्त्री, राजस्थान प्रभारी सुशील शर्मा, गोवा प्रदेशाध्यक्ष किशोर राव, कर्नाटक राज्य संयोजक धर्मान्ना तोंटापुर, राष्ट्रीय सचिव एम जी माणिशंकर, तमिळनाडू महिला आघाडी प्रदेशाध्यक्ष कयालविझी, दिंडीगुल-तमिळनाडू जिल्हाध्यक्ष राम कृष्णन, उत्तर प्रदेश संघटक रामनरेश, दिल्ली संघटक भुऱेसिंह एस एस पाल, गोवा राज्य सचिव सलमान खान, उत्तर प्रदेश महिला आघाडी प्रदेशाध्यक्ष प्राची शर्मा, पुर्वांचल अध्यक्ष वीरेंद्र प्रताप पाल, उत्तर प्रदेश युवा आघाडी अध्यक्ष  अशुंमन सिंह, बिहार निवडणूक निरीक्षक प्रदीप कुमार पाल आदी उपस्थित होते.

रासपच्या राष्ट्रीय अधिवेशनात महाराष्ट्र राज्यासह देशातील सात राज्यातून 'राज्य प्रतिनिधी' उपस्थित होते. प्रत्येक राज्यात राष्ट्रीय समाज पक्षाचे संघटनात्मक स्थान काय ? यावर राष्ट्रीय कार्यकारिणीने आढावा घेतला. देशातील प्रत्येक राज्याच्या विधिमंडळात राष्ट्रीय समाज पक्षाचे जास्तीत जास्त विधानसभा सदस्य व संसद सदस्य निवडून आनण्यासाठी अहोरात्र कष्ट घेण्यात यावे.  प्रत्येक राज्यातील संघटना वाढविण्यासाठी कार्यकर्त्यांनी जोमाने काम करण्याची आवश्यकता आहे. यावेळी पक्षाचे सॉफ्टवेअरचे उदघाटन राष्ट्रीय समाज पक्षाचे संस्थापक अध्यक्ष 'राष्ट्रनायक' महादेव जानकर यांच्याहस्ते करण्यात आले. देशातील सर्व राज्यात 'ऑनलाईन सभासद नोंदणी अभियान' लवकरच सुरु करणार असल्याचे सांगण्यात आले. प्रमुख पदाधिकाऱ्यांना नवी ऊर्जा व नवी उमेद घेऊन आपआपल्या राज्यात  काम करण्याचे निर्देश राष्ट्रीय कार्यकारिणीने दिले. चार सत्रात अधिवेशन पार पडले. 



















अधिवेशनानंतर रासप महासचिव कुमार सुशील यांनी राष्ट्रीय अधिवेशन उत्सहात झाले; अशी प्रतिक्रिया दिली. तर कर्नाटक राज्य सचिव अनिल पुजारी म्हणाले, कर्नाटक राज्यात स्थानिक स्वराज्य संस्थांच्या निवडणुकीत रासप लढणार आहे, तसेच कलबुर्गी ते नंदगड(बेळगाव) अशी दुचाकी रॅली काढणार आहे. फेब्रुवारी महिन्यात विजयपूर येथे मेळावा घेणार आहे. राष्ट्रीय सचिव माणिशंकर म्हणाले, तमिळनाडू प्रदेशाध्यक्षाची हकालपट्टी केली असून नवीन प्रदेशाध्ययक्ष आर मुरगन यांची नियुक्ती केली आहे.

बातमी संकलन : आबासो पुकळे

Sunday, December 13, 2020

१४,२३४ ग्रामपंचायतींसाठी १५ जानेवारी रोजी मतदान

 १४,२३४ ग्रामपंचायतींसाठी १५ जानेवारी रोजी मतदान

मुंबई :  राज्यातील ३४ जिल्ह्यांतील सुमारे १४ हजार २३४ ग्रामपंचायतींच्या सार्वत्रिक निवडणुकांसाठी १५ जानेवारी २०२१ रोजी मतदान; तर १८ जानेवारी २०२१ रोजी मतमोजणी होणार आहे. त्यासाठी आजपासून आचारसंहिता लागू झाली आहे, अशी घोषणा राज्य निवडणूक आयुक्त यू. पी. एस. मदान यांनी केली.

श्री. मदान यांनी सांगितले, एप्रिल ते जून 2020 या कालावधीत मुदत संपलेल्या 1 हजार 566 ग्रामपंचायतींच्या सार्वत्रिक निवडणुकांसाठी 31 मार्च 2020 रोजी मतदान होणार होते; परंतु कोविड-19 ची परिस्थिती उद्‌भवल्याने 17 मार्च 2020 रोजी हा निवडणूक कार्यक्रम स्थगित करण्यात आला होता. त्यानंतर तो पूर्णपणे रद्द करण्यात आला. यासह डिसेंबर 2020 अखेर मुदत संपणाऱ्या व नव्याने स्थापित होणाऱ्या सर्व  ग्रामपंचायतींसाठी हा निवडणूक कार्यक्रम जाहीर करण्यात आला आहे.

नामनिर्देशनपत्रे ३० डिसेंबरपर्यंत

या निवडणुकांसाठी नामनिर्देशनपत्रे 23 ते 30 डिसेंबर 2020 या कालावधीत स्वीकारली जातील. शासकीय सुटीच्या दिवशी नामनिर्देशनपत्रे स्वीकारली जाणार नाहीत. त्यांची छाननी 31 डिसेंबर 2020 रोजी होईल. नामनिर्देशनपत्रे 4 जानेवारी 2021 पर्यंत मागे घेता येतील व त्याच दिवशी निवडणूक चिन्ह वाटप होईल. मतदान 15 जानेवारी 2021 रोजी सकाळी 7.30 ते सायंकाळी 5.30 या वेळेत होईल. तर मतमोजणी 18 जानेवारी 2021 रोजी होईल. गडचिरोली जिल्ह्यात फक्त मतदानाची वेळ सकाळी 7.30 ते दुपारी 3 वाजेपर्यंत असेल, अशी माहिती श्री.मदान यांनी दिली.

२५ सप्टेंबरची मतदार यादी ग्राह्य धरणार

विधानसभा मतदारसंघाची 25 सप्टेंबर 2020 रोजी अस्तित्वात असलेली मतदार यादी या निवडणुकांसाठी ग्राह्य धरण्यात येणार आहे. त्यानुसार तयार करण्यात आलेल्या ग्रामपंचायतींच्या प्रभागनिहाय प्रारूप मतदार याद्या 1 डिसेंबर 2020 रोजी प्रसिद्ध करण्यात आल्या होत्या. त्यावर हरकती व सूचना दाखल करण्यासाठी 7 डिसेंबर 2020 पर्यंतची मुदत देण्यात आली होती. त्यानुसार अंतिम मतदार याद्या 14 डिसेंबर 2020 रोजी प्रसिद्ध केल्या जाणार आहेत, अशी माहितीही श्री. मदान यांनी दिली.

निवडणूक होणाऱ्या ग्रामपंचायतींची जिल्हानिहाय संख्या:

ठाणे- 158, पालघर- 3, रायगड- 88, रत्नागिरी- 479, सिंधुदुर्ग- 70, नाशिक- 621, धुळे- 218, जळगाव- 783, अहमनगर- 767, नंदुरबार- 87, पुणे- 748, सोलापूर- 658, सातारा- 879, सांगली- 152, कोल्हापूर- 433, औरंगाबाद- 618, बीड- 129, नांदेड- 1015, उस्मानाबाद- 428, परभणी- 566, जालना- 475, लातूर- 408, हिंगोली- 495, अमरावती- 553, अकोला- 225, यवतमाळ- 980, वाशीम- 163, बुलडाणा- 527, नागपूर- 130, वर्धा- 50, चंद्रपूर- 629, भंडारा- 148, गोंदिया- 189 आणि गडचिरोली- 362. एकूण- 14,234.


Monday, November 16, 2020

शिरताव ता- माण येथे मेंढपाळ बांधवास दिपवाळी च्या शुभेच्छया

 आज सोमवार, दि. १६ नोव्हेंबर २०२० रोजी दिपवाळी सण उत्सवाप्रसंगी शिरताव ता- माण जि- सातारा येथे माझे मावस बंधू श्री. अशोक कोळपे, श्री. गोरक्षनाथ कोळपे, श्री. मच्छिन्द्र कोळपे तसेच पुतणे सागर कोळपे, शुभम कोळपे यांना मेंढपाळ पुत्र आर्मी सातारा जिल्हा शाखेच्यावतीने दिपवाळी सणाच्या शुभेच्छ्या दिल्या.





Friday, October 30, 2020

भारताच्या राजकारणातील महादेव जानकर एक विचार : एस. एल.आक्कीसागर

भारताच्या राजकारणातील महादेव जानकर एक विचार : एस. एल.आक्कीसागर



महाराष्ट्र रासप प्रदेशाध्यक्षपदी आमदार रत्नाकर गुट्टे यांची वर्णी

रासपच्या राष्ट्रीय कार्यकारिणीची बैठक संपन्न; महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष, राष्ट्रीय संघटक निवडी जाहीर


मुंबई : आबासो पुकळे

राष्ट्रीय समाज पक्षाची पाळेमुळे १७ राज्यात रुजवली आहेत, त्यात महाराष्ट्र हा रासपचा गड आहे. महादेव जानकर हे पक्षाची ओळख बनलेली आहे.  महादेव जानकर हे आता व्यक्ती राहिली नसून भारताच्या राजकारणात एक विचार बनलेला आहे, असे प्रतिपादन रासप राष्ट्रीय अध्यक्ष एस एल अक्कीसागर यांनी केले. 



आज मुंबई येथे राष्ट्रीय समाज पक्षाची राष्ट्रीय कार्यकारिणीची बैठक पार पडली. बैठकीनंतर श्री. अक्कीसागर हे एका मराठी वृत्तवाहिनीशी बोलत होते. यावेळी राष्ट्रीय महासचिव कुमार सुशील, के. प्रसन्नकुमार उपस्थित होते.

श्री. अक्कीसागर पुढे म्हणाले, राष्ट्रनायक महादेव जानकर यांच्या मार्गदर्शनाखाली रासप पक्ष वाटचाल करत आहे, वाढत आहे. पक्षाच्या वर्धापनदिनी कनेक्ट इंडिया- स्वराज रॅली अंतर्गत राष्ट्रातील सर्व महामानवांच्या विचाराने राष्ट्रीय समाजाला जोडू व आमच्या रासपचे देशावर राज्य आणून महादेव जानकर यांना प्रधानमंत्री बनवण्याचे स्वप्न आहे. आज देशात जे काही राजकीय पक्ष आहेत, त्यांच्याशी मैत्री करू, समोरासमोर लढू. उत्तर प्रदेश, बिहार राज्यात रासपचे उमेदवार विधानसभा निवडणुकीत लढत आहेत. तळागळातून आलेले राष्ट्रनायक महादेव जानकर यांच्या नेतृत्वात कर्नाटक, तमिळनाडू, गुजरात राज्यात रासपचे २० नगरसेवक निवडून आले आहेत. नवनिर्वाचित महाराष्ट्र रासप प्रदेशाध्यक्ष आ. रत्नाकर गुट्टे हे रासपची सामाजिक, राजकीय विचारधारा घेऊन पक्षाचे काम राज्यात वाढवून महाराष्ट्रात रासपचे सरकार आणून मुख्यमंत्री बनवतील, असा विश्वास आहे.


रासप  राष्ट्रीय कार्यकारिणीच्या बैठकीत महाराष्ट्र राज्य शाखेच्या अध्यक्षपदी महाराष्ट्र विधानसभा गंगाखेड मतदार क्षेत्राचे रासप आमदार रत्नाकर गुट्टे यांची सर्वानुमते निवड करण्यात आली. बाळासाहेब दोडतले यांच्यावर पुनः एकदा  महाराष्ट्र राज्य मुख्य महासचिवपदाची जबाबदारी सोपवली आहे.राष्ट्रीय संघटकपदी गोविंदराव शूरणार(नांदेड), बाळासाहेब लेंगरे(पालघर), पंडित घोळवे(बारामती) यांच्या  निवडी केल्याचे रासप राष्ट्रीय अध्यक्ष एस एल अक्कीसागर यांनी घोषित केले.



Sunday, October 18, 2020

उत्तर प्रदेशात भाजपचे योगी आदित्यनाथ सरकार जातीयवादी

उत्तर प्रदेशात जातीयवादी सरकारकडून हिंदूंचे शोषण : प्रदीपकुमार पाल

रासप बिहार विधानसभा निवडणूक निरीक्षक प्रदीपकुमार पाल



मुंबई / आबासो पुकळे

उत्तर प्रदेशात जातीयवादी सरकारकडून हिंदूंचे शोषण चालू असल्याचा घणाघाती आरोप, रासपचे बिहार विधानसभा निवडणूक निरीक्षक श्री. प्रदीपकुमार पाल यांनी केला आहे. श्री. पाल हे बिहार मधील गया येथून बोलत होते. त्यांनी सोशल माध्यमाद्वारे एक व्हिडिओ जारी केला आहे.

श्री. पाल म्हणतात, जनतेने न्यायासाठी बलिया भूमीवर एकत्र यावे. बलीयाचे आमदार डरपोक असल्याने आरोपिसोबत उभे आहेत. आम्ही प्रामाणिक आहोत, कुणावरही अन्याय करत नाही. संपूर्ण हिंदुस्थानात आमच्या प्रामाणिकतेची नोंद आहे. भाजप कार्यकर्ते धिरेंद्र सिंग याने दुर्जनपुर येथे प्रशासकीय अधिकाऱ्याच्या समोर जयप्रकाश पाल यांची दिवसाढवळ्या गोळ्या घालून हत्या केल्यानंतर बलियाचे आमदार सुरेंद्र सिंग आरोपीची पाठराखण करत असल्याने'आमच्यावर अन्याय करत असेल तर तुला किडे पडतील, असा संताप आमदार सुरेंद्र सिंग यांच्यावर  व्यक्त केला आहे. 

आम्ही महारानी अहिल्याबाई होळकर यांचे वंशज आहे. या देशात अहिल्याबाई होळकरांनी मंदिर निर्माण केली. आम्ही शिवभक्त आहे. आम्ही हिंदू आहोत. हिंदूंना डिवचू नका. कोणत्याही एका जातीला त्रास देऊ नका. कधी ब्राम्हणांना त्रास, कधी जाटोना त्रास, कधी यादवाना त्रास, कधी पालांना त्रास देणारे तुमचे जातीवादी सरकार उत्तर प्रदेशमध्ये चालणार नाही. हिंदूंच्या नावावर आलात आणि हिंदूचेच शोषण करताय, अशा शब्दात उत्तर प्रदेश भाजपचे योगी आदित्यनाथ सरकाला श्री. पाल यांनी सुनावले आहे.

Thursday, September 24, 2020

केंद्र शासनाचे कामगारविरोधी मालकधार्जिणे धोरण

 केंद्र शासनाचे कामगारविरोधी मालकधार्जिणे धोरण : भगवानराव ढेबे

राष्ट्रीय समाज संघटित असंघटित कामगार फ्रंटची घणाघाती टीका

नवीमुंबई  :  आबासो पुकळे 

शास कामगारविरोधी मालकधार्जिणे धोरण राबवत असल्याची घणाघाती टीका, राष्ट्रीय समाज संघटित असंघटित कामगार फ्रंटचे संस्थापक अध्यक्ष कामगार नेते भगावानरावजी ढेबे यांनी केली आहे. नवी मुंबई कळंबोली येथे श्री. ढेबे बोलत होते.

श्री. ढेबे पुढे म्हणाले, शेतकरी विरोधी धोरण राबवल्यानंतर बहुमताच्या जोरावर लगेचच कामगार विरोधी धोरण राबवण्याचा सपाटा केंद्र शासनाकडून सुरु आहे. केंद्र शासनाच्या कामगार विरोधी धोरणाचा राष्ट्रीय समाज संघटित असंघटित कामगार फ्रंट  जाहीर निषेध करत आहे. दिवंगत प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयींच्या काळात कामगारविरोधी बील आणण्याचा प्रयत्न केला होता, त्यावेळी प्रमुख राजकीय पक्षांनी विरोध केला होता. देशातील कामगारांनी संसदेला घेराव घातला होता. आता मात्र केंद्र शासनाने बहुमताच्या जोरावर कामगार विरोधी कायदे पारित केले आहेत, त्यास आमचा पूर्णपणे विरोध आहे. किमान वेतनाबाबत केंद्र शासनाने निर्णय घेणे आवश्यक होते, परंतु कायमस्वरूपी कामगारांना कंत्राटी पद्धतीने ठेवण्याची मुभा कंपन्यांना देण्यात आली आहे. लवकरच राज्यातील कामगार संघटना संयुक्तपणे  केंद्रशासनाच्या धोरणा विरुद्ध आंदोलन उभारतील.  संयुक्त कामगार संघटना कृती समिती आंदोलनाची दिशा ठरवेल.

Monday, September 14, 2020

वंचितो की आवाज भागवत पाल

 भागवत पाल जी की पुण्यतिथि पर विशेष



 वंचितो की आवाज भागवत पाल


 खुद चलकर वंचितो की आवाज बनकर दूर तक चलना सिखाया                                                                               

मनोज पाल वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि महान व्यक्तित्व हालातो की ऑच मे तपकर महान बनते है । संघर्षो का बीडा उठाकर चलने वाले समाज मे नया कीर्तिमान स्थापित कर आने वाली पीढियो को सच्ची प्रेरणा प्रदान करते रहते है। देश की आजादी के बाद तो घोर जातिवाद के चंगुल मे फंसे हिन्दुस्तान का दबा–कुचला तबका कराह रहा था । उन्हे सियासत की मुख्यधारा मे आने का हक संविधान के पन्नो तक ही सीमित था व्यवहार मे उन्हे हेय दृष्टि से देखा जाता था वंचितो के लिए मुख्यधारा की राजनीति मे आना बडा दुश्कर कार्य समझा जा रहा था उसमे शामिल होने के लिए कोई सपना तो देख सकता था लेकिन हिम्मत जुटाना मुश्किल था।


समाज का मसीहा जब जन्म लिया मिर्जापुर की धरती पर

                                                           

ऐसे दौर मे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के के मझवा विकासखंड के केवटाबीर गांव मे शंभूनाथ पाल और सुखदेवी के आंगन मे एक बालक का जन्म हुआ। घरवालो ने नाम रखा भागवत ।


भागवत पाल बचपन से बहुमुखी प्रतिभा और राजनीतिक कुशलता के धनी थे

भागवत बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । समाज मे उॅच नीच की बढती खाई के बीच भागवत पाल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय मे पूरी की  । समाज मे विसंगतियो की भरमार देख उनका मन आहत था जिसे दूर करने की हसरत प्रारम्भ से ही मन मे बनी हुई थी इसलिए वह उच्च शिक्षा के लिए काशी विद्यापीठ मे प्रवेश लिया वह जानत थे कि समाज की इस बुराई को दूर करने के लिए राजनीति करना जरूरी है इसलिए वह काशी विद्यापीठ मे ही छात्र राजनीति करना प्रारम्भ कर दिया। अपनी बहुमुखी प्रतिभा और राजनीतिक कुशलता के दम पर वह छात्र संगठन मे मंत्री बनाये गये अब राजनीति की ककहरा सीखने का दौर प्रारम्भ हो गया था और उनका हौसला और अनुभव दोनो मे इजाफा होने लगा था। उस समय राजनीति की मुख्यधारा से जुडने के लिए वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मंझवा विधानसभा के टिकट मांगने के लिए गये लेकिन जातिवाद की तासीर ने भागवत पाल को फिर से निराश किया उन्हे अपमानित कर टिकट देने से इंकार कर दिया गया लेकिन उन्होने हौसला नही खोया क्योकि संकल्प की मजबूत दीवार उन्होने विचारो की मिट्टी से सानकर बनाई थी।


भागवत पाल की कार्यशैली और उनकी विचारधारा से काशिराम भी हुए थे कायल

उसी समय  भागवत पाल की  बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक काशीराम जी से मुलाकात हुई । काशीराम  भागवत पाल की कार्यशैली और उनकी विचारधारा से काफी प्रभावित हुए और उन्हे चुनाव लडने का टिकट दिया लेकिन अभी उनकी कठिनाई की परीक्षा समाप्त नही हुई थी वह महज 54 वोटो से चुनाव हार गये। ऐसे हालात मे भी उन्होने धीरज नही खोया और संघर्ष के पथ पर चलने की ठानी

एक दलित के अत्याचार के खिलाफ सात दिनो तक जेल मे रहे 


सन् 1991 मे वह फिर से चुनाव लडे इस बार वह मंझवा से विधायक बनकर विधानसभा पहुंच चुके थे । उनकी हुंकार और लोगो को प्रभावित करने की ताकत से काशीराम ने उन्हे प्रदेश महासचिव बना दिया। मझवा विधानसभा में एक दलित के साथ हुए पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ जेल भरो आंदोलन किया 586 लोगों के साथ 7 दिन तक मिर्जापुर जिला कारागार में राजनीतिक बंदी रहे राजनीतिक उठापटक के बीच 1993 मे फिर से मध्यावधि चुनाव हुए जिसमे जनता ने इन्हे फिर से अपने आंखो का तारा बनाकर विधानसभा भेजा । उस समय राजनीतिक घटनाक्रम मे बसपा का सपा के साथ गठबंधन टूट गया और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बसपा ने सूबे मे सरकार बनाई। 27 जून 1995 का वह ऐतिहासिक दिन था जब भागवत पाल ने मायावती मंत्रिमंडल मे शामिल होकर राज्यमंत्री के रूप मे शपथ लिया यह महज शपथ नही था इस बात की मुनादी थी कि संघर्षो के साये मे भी रहकर बडा से बडा मुकाम हासिल किया जा सकता है।


साजिश और शियासत के शिकार मे समाज का भी शिकार हुआ                                  

आज तक समाज राजनीतिक शियासत मे उबर नही सका

उन्हे प्रदेश मे उत्तराखण्ड विकास के साथ साथ दुग्ध विकास विभाग की जिम्मेदारी मिली लेकिन तीन माह बाद फिर से सरकार गिर गई लेकिन भागवत पाल का राजनैतिक कद बढ गया काशीराम ने इन्हे 31अक्टुबर 1996 को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। काशीराम की मंशा थी कि इन्हे विधानपरिषद भेज कर इनसे सेवा ली जाय लेकिन मायावती की जिद के सामने वह हार गये और काशीराम के मना करने के बावजूद वह मजमा विधानसभा से नामांकन किया लेकिन वह चुनाव हार गये । उस समय प्रदेश मे किसी भी दल को बहुमत नही मिला था’ मुलायम सिंह के संदेशवाहक बनकर वह मायावती से मिले और मुलायम सिंह का संदेश कहा कि अगर मायावती खुद मुख्यमंत्री न बने तो वह समर्थन कर सकते है। बस यही वह घटना थी जहां से साजिश और सियासत ने मिलकर भागवत पाल और पाल समाज के नेतृत्व की धार को कुन्द करने का काम किया। मायावती को अंदेशा हुआ कि भागवत पाल खुद मुंख्यमंत्री बनना चाहते है इसलिए मायावती भागवत जी से नफरत करने लगी। 1997 मे बीजेपी और बसपा की मिलीजुली सरकार बनी । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के मंत्री बनने और भागवत जी से भेदभाव करने पर मीडिया बंधुओ ने जब मंत्री न बनाये जाने पर भागवत से सवाल दागा तो उन्होने कहा कि मंत्री तो महज विभाग देखता है और प्रदेश अध्यक्ष पूरा प्रदेश देखता है बस यही बात मायावती को नागवार गुजरी और काशीराम को बिना किसी सूचना के छल करते हुए भागवत पाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। काशीराम ने उस समय भागवत जी को राष्ट्रीय सचिव बना दिया जिसे लेकर मायावती चिढ गई और लखनउ स्थित उनके सरकारी आवास से उनका सामान फेंककर अपनी नाराजगी जाहिर किया। लेकिन एक स्वाभिमानी व्यक्तित्व को कहां तक यह अपमान बर्दाश्त होता वह 10 अक्टूबर 1997 को पिछडा समाज पार्टी का गठन कर लिया। सन 1998 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह मुलायम सिंह के साथ हो गये और समाजवादी पार्टी मे प्रदेश उपाध्यक्ष बनाये गये। 2002 के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी ने मझवां विधानसभा से उन्हे टिकट दिया लेकिन वह चुनाव नही जीत सके । 12 सितम्बर 2004 को वह दुनिया को अलविदा कह दिया और अपने विचारपुंज को एक नई सीख के साथ छोड दिया।

आज भी नई प्रेरणा देते है भागवत पाल के विचार


भागवत पाल के विचार आज भी पिछडे समाज को नई प्रेरणा देते है। उनका अदम्य साहस और कुछ कर गुजरने की सीख आने वाली पीढियो को हमेशा सीख देती रहेगी। वह सिर्फ पाल समाज के नेता नही थे बल्कि जुल्म और ज्यादिती सहने वाले तबके के सच्चे मसीहा थे।


अपमान पर भी नही डिगे थे भागवत पाल

सामान्य रूप से किसी चीज की शुरूआत मे अपमान का घूट पीने के बाद लोग टूट जाते है और खुद और भगवान को कोसना शुरू कर हिम्मत हार जाते है लेकिन भागवत पाल ऐसे अडिग पुरूष थे जो रास्ते तो जरूर बदलते थे मगर उनकी मंजिल हमेशा उनके तय किये निर्णय पर जाकर रूकती थी। छात्र राजनीति से जुडने के बाद जब वह जनता दल के मुखिया के पास टिकट मांगने के लिए गये तो उन्हे यह कहकर अपमानित किया गया कि जिस समाज से वह आते है उस समाज के लोग कभी ग्राम पंचायत का चुनाव भी नही जीत पाये है तो विधानसभा कैसे जीत पायेगे । यह वही चौधरी चरण सिंह थे जो बाद मे देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन देश की बागडोर अपने हाथो मे लेकर चलाने वाले उस प्रधानमंत्री को नही पता था कि भागवत पाल हर कोई नही होता है जब वह भागवत पाल से यह बात कह रहे थे उस समय उनके चेहरे पर मधुर मुस्कान थी क्योकि वह जानते थे कि उन्हे विधानसभा पहुंचने से कोई रोक नही पायेगा 

भागवत पाल के छह बच्चे है

भागवत पाल के चार पुत्र रत्न हुए जिन्होंने अपने पिता के विचारों को हमेशा आत्मसात किया। बड़े पुत्र भारत सिंह पाल प्रयागराज हाई कोर्ट में वकालत के माध्यम से समाजसेवा में लगे है। जय सिंह पाल मिर्जापुर सिविल कोर्ट में रहते हुए भारतीय जनता पार्टी में निवर्तमान जिला महामंत्री के रूप में अपनी सेवा दे रहे है। विजय सिंह पाल पेशे से व्यवसायी है ईन्जि उदय सिंह पाल लोक निर्माण विभाग दिल्ली में कार्यरत है।


भागवत पाल विचार मंच

Wednesday, September 9, 2020

भारतीय इतिहास के महान नायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शीतल पाल

 राष्ट्रीय समाज के अमर शहीद शीतल पाल जी की जयंती पर शत-शत नमन

राष्ट्रीय समाज के अमर शहीदों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता

       

    राष्ट्रीय समाज के एक भेड़ पालक चरवाहा की अमर कहानी जो कहानी ही मात्र नहीं बल्कि वास्तविक रूप से अपने लग्गे के माध्यम से घोड़े के पैर में फंसा कर आग्रेजो का सर कलम कर दिया। 

  देश की आजादी की लड़ाई में महान भूमिका निभाने वाले 

भारतीय इतिहास के महान नायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 1857  क्रांति की लड़ाई में शहीद होने वाले आखिर वह कौन थे राष्ट्रीय समाज के शहीद शीतल पाल 1857 की क्रांति में जिले के पाली में अंग्रेज अफसरों को मारे जाने में राष्ट्रीय समाज के शीतल पाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 



बताया जाता है कि उस दौरान जिले में अंग्रेजो द्वारा किसानों की खेतों पर कब्जा कर जबरन नील की खेती कराई जाती थी। और किसान भाइयों को एवं आम नागरिक को प्रताड़ित किया जाता था इस दौरान शहीद झूरी सिंह ने इसका विरोध करना शुरू किया। विरोध से आक्रोशित अंग्रेजो ने झूरी सिंह के बड़े भाई को फांसी दे दी । और झूरी सिंह पर इनाम रख दिया। इस दौरान अंग्रेज अफसर रिचर्ड म्योर अपने सहयोगियों के साथ पाली पहुंचा, जहां झूरी सिंह ने अपने सहयोगियों के साथ रिचर्ड म्योर का पीछा किया। घोड़े पर सवार रिचर्ड म्योर भागने लगा और झूरी सिंह उसका पीछा करते रहे। तभी राष्ट्रीय समाज के भेड़पालक शीतल पाल खेत मे अपने जानवर भेड़ों को चरा रहे थे उन्होंने तत्काल अपने लग्गे,जिससे भेड़ो के चारे की व्यवस्था करते थे से अंग्रेज अफसर के घोड़े के पैर में फंसा दिया।  जिसके बाद रिचर्ड म्योर नीचे गिर पड़ा तत्काल तलवार से उसका सर कलम कर दिया। 


राष्ट्रीय समाज के भेड़ पालक का योगदान देश और राष्ट्र के लिए बहुत ही अतुलनीय रहा है जब भी राष्ट्र देश की बात हुई क्या फिर  राष्ट्रीय समाज के चरवाहो ने  हमेशा अपने आप को न्योछावर और बलिदान देने का काम किया है। ऐसे राष्ट्रीय समाज  में कई सारे उदाहरण है चाहे वह स्वतंत्र संग्राम सेनानी क्रांतिवीर संगोल्ली रायना हो या बाबू जोखई राम पाल जी रहे चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राष्ट्रीय समाज के शीतल पाल जी चाहे वह  देश की आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले  राष्ट्रीय समाज के प्रेम सिंह गडरिया/धनगर  जी हो क्या अन्य तमाम ऐसे सैकड़ों लोग देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दिया है। लेकिन कहीं ना कहीं इस भारत देश के बड़ी अजीब विडंबना है  कि राष्ट्रीय समाज के  इतिहास को दबाए जाने की साजिश रची गई। खास विशेष जाति के लोगों को ही सामने लाया गया  तमाम दबे कुचले शोषित वंचित राष्ट्रीय समाज के तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कभी सामने नहीं लाया गया।

   


     स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद राष्ट्रीय समाज के नायक शीतल पाल जी  को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शत् शत् नमन करता हूं 👏👏👏।

Tuesday, September 8, 2020

यशवंत सैनिकांचा एकता कपुरच्या बंगल्यावर निशाना






संपूर्ण समाजाची माफी मागावी अन्यथा एकता कपुरला मुंबईत फिरू देणार नाही ; यशवंत सेना सरसेनापतीनीं खडसावले



मुंबईभारतातील पहिल्या आदर्श महिला राज्यकर्त्या महाराणी अहिल्यादेवी होळकर यांच्या नावाचा वापर करत अपमानजनक चित्रीकरण केल्याने संपूर्ण हिंदुस्थानात  रोष व्यक्त करण्यात येत आहे. आज मुंबई शहरात     यशवंत सेना सरसेनापती माधव गडदे यांच्या नेतृत्वात यशवंत सैनिकानी एकता कपुरच्या बंगल्याला लक्ष्य करुन जोरदार निशाना साधला आहे.  सरसेनापती माधवभाऊ गडदे यांनी तीव्र शब्दात एकता कपूर व बालाजी फिल्मला खडसावले आहे. हिंदुस्थानात हजारो मंदिर उभरणाऱ्या अहिल्यादेवींच्या नावाचा वापर करण्यापेक्षा एकता कपुरने तीच्या आईचे नाव वेबसीरिज मध्ये वापरावे. संपूर्ण समाजाची माफ़ी मागावी, अन्यथा एकता कपुरला मुंबईत फिरू देणार नसल्याचा इशारा श्री. गडदे यांनी दिला आहे.

Sunday, September 6, 2020

पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर यांच्या इतिहासाचा विस्तृतपणे शासनाच्या पाठ्यपुस्तकात समावेश करावा : ओबीसी नेते तथा जेष्ठ धनगर समाज नेते प्रकाश आण्णा शेंडगे यांची मागणी

 


पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर यांच्या इतिहासाचा विस्तृतपणे महाराष्ट्र शासनाच्या पाठ्यपुस्तकात समावेश करावा.ओबीसी नेते तथा जेष्ठ धनगर समाज नेते प्रकाश आण्णा शेंडगे यांची शिक्षणमंत्री वर्षा गायकवाड यांच्याकडे मागणी


राजमाता,पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर यांनी अखंड हिंदुस्थानभर लोककल्याणकारी कार्य करून संपूर्ण देशासमोर एक आदर्श ठेवला आहे.काश्मीर पासून ते कन्याकुमारी पर्यत त्यांनी बारवा,घाट,धर्मशाळा,तलाव,पूल तसेच मंदिरांचा निर्माण,जीर्णोद्धार यांसारखे असंख्य लोककल्याणकारी कार्य केली आहेत.

आपल्या महाराष्ट्रातील चौंडी ता.जामखेड या छोट्याशा गावातून इंदोर-मध्यप्रदेश येथे जाऊन,तिथली राणी बनून संपूर्ण देशभर कार्य करणारी महाराणी म्हणून संपूर्ण महाराष्ट्रवासीयांना त्यांचा अभिमान असायला हवा असे मत प्रकाश आण्णा शेंडगे यांनी शिक्षणमंत्र्यांसमोर मांडले.


अहिल्यादेवींनी सर्व जाती-धर्मासाठी कार्य केले आहे,त्यांच्या कार्याचा गौरव करण्यासाठी व येणाऱ्या नवीन पिढीला त्यांचा इतिहास वाचून प्रेरणा घेण्यासाठी अभ्यासक्रमात समावेश करावा अशी मागणी प्रकाश शेंडगे यांनी केली.


या भेटीदरम्यान शिक्षणमंत्री वर्षी गायकवाड यांनी सांगितले की पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर यांच्या कार्याचा आम्हाला सार्थ अभिमान आहे,समस्त स्त्री जातीसाठी त्यांचे कार्य आदर्शवत आहे.शिक्षण संचालकांना सांगून याविषयीचे ताबडतोब आदेश देण्यात येतील,याचे त्यांनी ठोस आश्वासन दिले.

Wednesday, September 2, 2020

कविता हा बाबासाहेब कोकरे यांचा आनंद आहे - प्रा. प्रवीण दवणे (प्रसिद्ध कवी, गीतकार)

 


कवी श्री.बाबासाहेब कोकरे यांचा 'इन्द्रधनु' हा काव्यसंग्रह नावाप्रमाणे भावनांचे सप्तरंग जपणारा आहे. त्यांनीच म्हटल्याप्रमाणे 'अतुट प्रीतीचे' असे रंग त्यात आहेत. कधी वेदना, कधी आनंद, कधी निसर्ग सौंदर्य ; अशा अनेकविध छटांचे दर्शन घडविणारे असे हे सप्तरंग आहेत. 'वाट' सारख्या कवितेत जीवनातील खाचखळग्यांचे दर्शन आहे. 'पिकल पान ' मधून वार्धक्याने व उपेक्षेने दुःखी झालेल्या जीवाची कथा - व्यथा आहे. 'माझ बैलं' मधून आपल्या लाडक्या खिल्लारी जोडीचं कौतुक आहे. 'उघड्य नेत्रांनी' सारख्या कवितेतून सामाजिक आशय भेदकपणे व्यक्त झालेला दिसतो. 'धुळदेव गावात ' ही अगदी वेगळी, लोकगीताच्या अंगाने जाणारी कविता कवी श्री. बाबासाहेब कोकरे लिहितात. ' सांबर ' मधून एका देखण्या सांबराचे सुरेख शब्दचित्र साकारले जाते.   

 '            संवेदना आव्हान करणाऱ्या -                             '                        असा रंग सुगंध धुंद होऊन                                   '              निळ्या निळ्या सुंदर डोळ्यांत                              '                        डोळंभर भरला तर...                       

  अशा उत्कट ओळीही बाबासाहेब लिहून जातात. कविता हा बाबासाहेब कोकरे यांचा आनंद आहे. त्या आनंदानेच त्यांचे  ' इंद्रधनु '  साकारले आहे. पुढील प्रवासात अनेक सूक्ष्म तरल हुरहुरीचा वेध घेणाऱ्या अधिक समर्थ कविता ते लिहितील अशी आशा आहे. त्यांच्या या कवितासंग्रहाला माझ्या अगदी मनापासून शुभेच्छा!          '       

  -  प्रा. प्रवीण दवणे ( सुप्रसिद्ध कवी, गीतकार )

Wednesday, August 5, 2020

कर्नाटकचे माजी मुख्यमंत्री व विरोधी पक्षनेते सिद्धरामय्या देखील कोरोना बाधित...


माजी मुख्यमंत्री व विरोधी पक्षनेते सिद्धरामय्या देखील कोरोना बाधित...


कर्नाटक / बेंगलुरु (प्रतिनिधि) : देशभरात कोरोनाने थैमान घातले असून सर्वसामान्य ते अनेक सेलिब्रेटी,राजकीय नेते हे देखील या विषाणूच्या विळख्यात अडकले आहेत. कर्नाटक विधानसभेतील विरोधी पक्षनेते आणि माजी मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या यांना देखील कोरोनाची लागण झाली आहे. ते ७१ वर्षीय असून त्यांना रुग्णालयात दाखल करण्यात आले आहे. त्यांची प्रकृती स्थिर असून देखरेख ठेवली जात आहे. अशी माहिती मणीपाल रुग्णालयाने निवेदनात दिली. 

धनगर / कुरुबा समाजातुन आलेले सिद्धरामय्या हे मास लीडर म्हणून ओळखले जातात. ते काँग्रेसचे दिग्गज नेते आहेत. ते देशातील पाहिले मुख्यमंत्री आहेत की जे धनगर समाजातुन आलेले आहे. सिद्धरामय्या यांनी २०१३ ते २०१८ या काळात कर्नाटकच्या मुख्यमंत्रीपदाचा कारभार सांभाळला असून सद्या ते विरोधी पक्षनेतेपदाची धुरा सांभाळत आहेत.

विरोधी पक्षनेते आणि माजी मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या यांनी ट्विट करत कोरोनाची लागण झाल्याचे सांगितले. “माझी कोव्हिड चाचणी पॉझिटिव्ह आली आहे. खबरदारी म्हणून डॉक्टरांच्या सल्ल्याने मला रुग्णालयात दाखल करण्यात आले आहे. माझ्या संपर्कात आलेल्या सर्वांना मी लक्षणे तपासण्याची आणि स्वत:ला क्वॉरन्टाईन ठेवण्याची विनंती करतो” असे ट्वीट सिद्धरामय्या यांनी केले आहे. 

सिद्धरामय्या यांच्या मुलाने सांगितले, वडिलांना सोमवारी ताप आला होता. त्यानंतर कोरोना अँटिजन चाचणी केली. ज्यात त्यांचा कोरोना अहवाल पॉझिटीव्ह आला. कर्नाटकमधील कोरोना विषाणूच्या विळख्यात सापडलेले सिद्धरामय्या हे दुसरे मोठे नेते आहे, याआधी भाजप नेते मुख्यमंत्री बीएस येडियुरप्पा हेही कोरोनाच्या विळख्यात सापडले आहे.

मुख्यमंत्री बीएस येडियुरप्पा यांनी कन्नडमध्ये सिद्धरामय्या यांना टॅग करून एक ट्विट केले, “पूर्व मुख्यमंत्री आणि विरोधी पक्षाचे नेते सिद्धरामय्या यांची कोरोना संक्रमित विषयी बातमी ऐकून हैराण झालो. माझ्या शुभेच्छा तुमच्यासोबत आहे, तुम्ही लवकरच बरे होऊन लोकांच्या सेवेत रुजू व्हाल"

Saturday, August 1, 2020

पुकळेवाडीत बाजरी, मका पिके वादळी वाऱ्यासह भुईसपाट

पुकळेवाडीत बाजरी, मका पिके भुईसपाट

दि.१ ऑगस्ट २०२०, पुकळेवाडी.
माण तालुक्यातील पुकळेवाडी येथे गुरुवारी व शुक्रवारी रात्री झालेल्या वादळी पाऊस वाऱ्यामुळे बाजरी व मका ही पिके जमिनीवर आडवी झाली असून प्रचंड नुकसान झाले आहे. यामुळे शेतकरी हवालदिल झाले आहेत. काही शेतकऱ्यांकडून भुईसपाट झालेले पिक उभे करुन बांधन्याचा प्रयत्न सुरु आहे. पुकळेवाडीच्या शिवारात बाजरीचे पिक पोटऱ्यात व काही ठिकाणी निसावले आहे. पण हेच पीक भुईसपाट झाल्याने शेतकरी चिंतातुर आहे.

पुकळेवाडीसह संपूर्ण माण तालुक्यावर दुष्काळाचे सावट कायम असते. मात्र  खरीप हंगामात सुरवातीस झालेल्या पाऊसाच्या हलक्या सरी कोसळल्यानंतर पुकळेवाडी येथील शेतकऱ्यांनी कमी ओलीत बाजरी व मका पिकाची पेरणी केली होती. काही शेतकऱ्यांवर बाजरीचे पीक दुबार पेरणीचे संकट ओढवले होते. मका पिकावर किडीचा प्रादूर्भाव दिसून येत आहे. गेल्या दोन दिवसांपासून वाऱ्यासह पावसाची हजेरी लागत असल्यामुळे बाजरी, मका हे संपूर्ण पिकच वाया जाण्याची भिती व्यक्त होत आहे. 

पुकळेवाडीसह परिसरात शुक्रवारी सायंकाळी जोरदार वाऱ्यासह पावसाला सुरुवात झाली. जोरदार वाऱ्यायामुळे फुलोऱ्यात आलेले बाजरीचे पिक भुईसपाट झाले आहे. पिकांचे पंचनामे करुन नुकसान भरपाई मिळावी, अशी मागणी शेतकऱ्यामधून होत आहे.

Friday, July 31, 2020

कवी बाबासाहेब कोकरे यांच्या कविता भविष्यकाळात मोठा पल्ला गाठतील - संगीता धायगुडे ( महानगरपालिका आयुक्त )

कवी बाबासाहेब कोकरे यांच्या कविता भविष्यकाळात मोठा पल्ला गाठतील : संगीता धायगुडे, महानगरपालिका आयुक्त 


श्री.बाबासाहेब कोकरे यांच्या कविता, गीते ही मनाचा वेध घेणारी आणि विचार करायला प्रवृत्त करणारी अशी आहेत. त्यांच्या कवितेतून सामाजिक भान आणि ग्रामीण भागातील चित्रण तसेच चालीरीती यांचा उल्लेख वारंवार आढळतो. त्याचे कारण त्यांचे स्वतःचे बालपण आणि जडणघडण त्याच मातीतून झाली आहे. त्या मातीशी इमान राखत श्री. बाबासाहेब कोकरे शेतकऱ्यांच्या कष्टाचा आढावा घेतात तर कधी ' देव देव करण्यात' अशा कवितेमधून अंधश्रद्धेवर प्रहार करतात. 'जगाला सांभाळणारा' या कवितेत शेतकऱ्याच्या श्रमाचं आणि त्याच्या अस्तित्वाचं महत्त्व ते विषद करतात आणि  'काळीज फत्तराचे ' या कवितेतून धान्य पिकवणाऱ्या कुणब्याचं महत्त्व पटवून देतात तेव्हा ते वाचकाला अंतर्मुख होऊन महात्मा गांधीच्या  'खेड्याकडे चला'  या हाकेची आठवण करून देतात. अशा या श्री. बाबासाहेब कोकरे यांच्या कविता भविष्यकाळात मोठा पल्ला गाठतील असा विश्वास वाटतो. त्यांच्या भविष्यासाठी अनेक शुभेच्छा !                                     'कवयित्री - संगीता धायगुडे  ( महानगरपालिका आयुक्त) 

राजकीय पक्षांच्या सोयीसाठी धनगर आरक्षणाचा वापर होवू देणार नाही: विक्रम ढोणे

राजकीय पक्षांच्या सोयीसाठी धनगर आरक्षणाचा वापर होवू देणार नाही: विक्रम ढोणे


सांगली : धनगर आरक्षणाचा प्रश्न राजकीय पक्ष त्यांच्या राजकीय सोयीनुसार आता हाताळू शकणार नाहीत तर समाजाच्या सोयीनुसार त्यांना चालावे लागेल. आम्ही हा प्रश्न विसरणार नाही आणि त्यांनाही विसरू देणार नाही, हा निर्धार समाजाने केल्याचे धनगर विवेक जाग्रती अभियानाचे संयोजक विक्रम ढोणे यांनी म्हटले आहे.

सहा वर्षापुर्वी ( 2014 साली) देवेंद्र फडणवीस यांनी बारामतीला येवून धनगर समाजाला एसटी आरक्षण लागू करण्याचे आश्वासन दिले होते. 
तत्पुर्वी पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी धनगर समाजाच्या आरक्षणाचा मुद्दा आपल्या प्रचारसभांत घेतला होता. त्यामुळे भाजपच्या नेत्यांवर 
धनगर समाजाने विश्वास ठेवला, मात्र प्रत्यक्षात समाजाचा विश्वासघात झाला. नियोजनबद्धरित्या फसवणूक करण्यात आली. म्हणून 
फडणवीस यांनी बारामतीत आश्वासन दिलेला 29 जुलै हा दिवस 'आत्मचिंतन दिवस' म्हणून पाळण्याचे आवाहन धनगर विवेक जाग्रती 
अभियानाच्यावतीने करण्यात आले होते. 

धनगर आरक्षणाच्या नावाखाली फक्त व्होटबँक पॉलिटिक्स सुरू आहे. भाजपने तर पंधरा वर्षापासून फसवणुकीची मालिका सुरू ठेवली आहे. 
अटलबिहारी वाजपेयी ते नरेंद्र मोदीपर्यंत अनेक भाजप नेत्यांनी धनगर आरक्षणावर मेळावे भरवले, मात्र समाजाला आरक्षण मिळाले नाही, हे 
वास्तव आहे. देवेंद्र फडणवीस यांनी तर समाजाला संभ्रमित करून ठेवणारे नेते तयार केले आहेत. फडणवीस सरकारच्या काळात उच्च 
न्यायालयात दाखल झालेल्या प्रतिज्ञापत्रात धनगरांच्या बाजूचे काही नाही, मात्र फडणवीसांचे हस्तक चुकीची माहिती देत आहेत. 
शिवसेनेचे पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे यांनीही भाजपसोबत आरक्षणाचे आश्वासन दिले होते. मात्र त्यांनी हा प्रश्न सोडवण्यासाठी ठोस प्रयत्न केले नाहीत. सद्या मुख्यमंत्रीपद त्यांच्याकडे असतानाही त्यांनी भाजपसारखेच धोरण घेतलेले आहे. राष्ट्रवादी काँग्रेस पक्षानेही आरक्षणाचे लेखी आश्वासन दिले होते. बहुतेक सर्व पक्षांनी धनगर समाजाचा वापर करून घेतला आहे. वारंवार होणाऱ्या या प्रकारांबद्दल आत्मचिंतन करून पुढील दिशा ठरवण्यासाठी 29 जुलैला सोशल मिडीयावर व्यक्त होण्याचे आवाहन केले होते. त्यानुसार राज्यभरात चर्चा, संवाद घडल्याचे ढोणे यांनी सांगितले.

ढोणे म्हणाले की, समाजातील युवक वर्गात जाग्रती येवू लागली आहे. नेते बोलले काय आणि केले काय, याचा विचार समाज करू लागला 
आहे. राजकीय डावपेच समजून घेवू लागला आहे. यासंबंधाने अनेकांनी आपली मते सोशल मिडीयावर व्यक्त केली आहेत. कोल्हापूरपासून 
नागपूरपर्यतच्या लोकांनी याप्रश्नी फोनवर चर्चा केली आहे. 'सर्वच पक्षांनी समाजाची फसवणूक केली आहे. आता त्यांना भुलायचे नाही' असा 
निर्धार यानिमित्ताने समाजातील सुशिक्षीतांनी केलेला आहे. प्रस्थापित पक्ष पाहिजे तेव्हा धनगर आरक्षणाचा विषय बाहेर काढतात आणि 
नको असेल तेव्हा त्याकडे पाहतही नाहीत, हे वास्तव आहे. यापार्श्वभुमीवर राजकीय पक्ष हा प्रश्न त्यांच्या राजकीय सोयीनुसार आता हाताळू 
शकणार नाहीत तर समाजाच्या सोयीनुसार त्यांना चालावे लागेल. आम्ही हा प्रश्न विसरणार नाही आणि त्यांनाही विसरू देणार नाही.

गेल्या सात वर्षात पंतप्रधान नरेंद्र मोदी आणि माजी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस या भाजप नेत्यांनी धनगर समाजाला वेळोवेळी 
एसटी आरक्षणाचे आश्वासन दिले, प्रत्यक्षात मात्र नियोजनबद्ध फसवणूक केली. त्यांच्याशिवाय इतर नेत्यांनीही आजवर समाजाची फसवणूक 
केली आहे. फसवणूक करणारे सर्वजण नामानिराळे झाले आहेत, मात्र धनगर समाज हा प्रश्न विसरणार नाही आणि विसरूही देणार नाही, हा 
निर्धारही समाजाने केल्याचे ढोणे यांनी म्हटले आहे.

Friday, July 24, 2020

शब्दांची देणगी लाभलेला कवी बाबासाहेब कोकरे

कवी बाबासाहेब कोकरे यांना शब्दांची देणगी आहे  - प्रा. दादाराम साळुंखे


दुष्काळाच्या झळा सोसत सोसत त्यातून शब्दांचे हिरवेगार मळे फुलविणारे बाबासाहेब कोकरे यांना शब्दांची देणगी आहे. त्यांच्या कवितेतून चौफेर विषय आले आहेत. अनेक अंगांना स्पर्श करता करता त्यांनी श्रोत्यांच्या आणि वाचकांच्या अंतःकरणात हात घातला आहे. समाज आणि समाजातील दुःखं, दारिद्र्य, अज्ञान यांनी पिचलेली माणसे यांच्यात या कविता आशावाद निर्माण करतात. शेतकरी असून ही पाण्याअभावी मेंढराच्या मागे फिरता फिरता जगाचा अनुभव घेणारा कवी. प्रत्येक कवितेतून डोकावताना दिसतो. दुष्काळ आहे म्हणून तो निराश नाही. तो म्हणतो -           
'सामना करतो दुष्काळाशी ' 
बोलणं दमदार पण ठळक आहे.'           
कणखर, कष्टाळू माणदेशी माणूस                            '             हीच आमची ओळख आहे.'                         
 सगळ्या कविता कवीच्या हृदयात दुःख असले तरी कवी नर्मविनोदी शैलीत मांडतांना दिसतो. हसता हसता श्रोत्यांना त्यांचे फटके मनावर आघात करून विचार करण्यास भाग पाडतात. कवितेच्या माध्यमातून सगळ्या महाराष्ट्राला माणदेशी माणूस मोडून पडणारा नव्हे तर उभा राहणारा सर्वांना जोडणारा आहे. हे दाखवून देण्यासाठी  ' शब्दांचे फटकारे'  घेऊन निघाला आहे. एक दिवस हेच फटकारे सर्वांना संस्कार देणारे ठरणार आहेत.
     -प्रा.  दादाराम  साळुंखे
     (प्रेरणादायी वक्ते आणि लेखक)

Tuesday, July 21, 2020

HC reserves order on plea for 50% OBC quota in All India Quota medical seats



HC reserves order on plea for 50% OBC quota in All India Quota medical seats


The Madras High Court on Friday reserved its verdict on cases filed by a host of political parties, individual politicians and the State government, seeking 50% reservation for Other Backward Classes (OBCs) in medical and dental seats surrendered to the All India Quota (AIQ) every year, as per a judgment passed by the Supreme court in 1986.

Chief Justice Amreshwar Pratap Sahi and Justice Senthilkumar Ramamoorthy decided to deliver their verdict on July 27 after hearing arguments advanced by Advocate General Vijay Narayan for the State government, senior counsel P. Wilson for the DMK and AR.L. Sundaresan for the AIADMK.

Senior counsel A. Thiyagarajan and advocates K. Balu and Kabilan Manoharan also made their submissions on behalf of the Dravidar Kazhagam, PMK and the Naam Tamilar Katchi respectively. CPI(M), CPI and MDMK too had filed cases.

Mr. Wilson told the court that it was one of the rare occasions “when the entire Tamil Nadu had come together against the Centre”. He said almost all political parties in were voicing their concerns together because the cause involved the issue of rightful reservations to OBCs.

The A-G told the court the AIQ was basically a creation of the Supreme Court judgment passed in September 1986. Till then, all seats in State government medical and dental colleges were filled up only with local residents of the respective States. Disagreeing with such practice, the Supreme Court had ordered creation of AIQ

Accordingly, State governments began surrendering 15% of medical and dental seats in undergraduate studies and 25% of postgraduate seats to the AIQ, every year, so that candidates across the country could compete for them. The number of postgraduate seats to be surrendered was increased from 25% to 50% in 2005.

In 2007, the Supreme Court also ordered the reserving of 15% of seats in the AIQ for Scheduled Castes and 7.5% for Scheduled Tribes. However, OBCs were not given any reservations.

A case seeking reservations for OBCs is still pending in the apex court, though the State government is providing as high 50% reservation to OBCs in State quota seats.

Pointing out that the State government determined quota depending on population, the A-G said that the population of Scheduled Castes in the State was 18% as per the last census and hence they were given 18% reservations. Similarly, the 1.25% of Scheduled Tribe population was given 1% reservation, thereby reserving a total of 69% of seats for various caste groups.

A similar pattern should be followed by the Centre too for the seats surrendered by the State government to the AIQ, without imposing a rider that the total reservation should not exceed 50% of seats available under the quota, he said. The A-G claimed that Only then would OBC students from the State be able to get seats under AIQ, the A-G said.

However, Additional Solicitor General R. Shankaranarayanan and advocate V.P. Raman representing the Medical Council of India said that reservations in AIQ should not be allowed to exceed 50%. Meritorious candidates would otherwise suffer, they said.

“What will happen if reservations in Tamil Nadu is increased from 69% to 90% in Tamil Nadu depending on the population? The meritorious candidates will be at a loss and that was never the intention of the Supreme Court, ever since it created the AIQ,” the ASG said. The ASG also said that OBCs from different States could compete for the seats under AIQ. In such circumstances, the petitioners might question the genuineness of their community status and claim that they are not OBCs at all, he added.

मध्य प्रदेश में 14 फीसद से ज्यादा ओबीसी आरक्षण पर हाई कोर्ट की रोक कायम



मध्य प्रदेश में 14 फीसद से ज्यादा ओबीसी आरक्षण पर हाई कोर्ट की रोक कायम

 मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 14 फीसद से अधिक आरक्षण पर पूर्व में लगाई गई रोक बरकरार रखी है। जबलपुर स्थित मुख्य पीठ के प्रशासनिक न्यायाधीश संजय यादव व जस्टिस बीके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने राज्य शासन को इस शर्त पर शिक्षक चयन प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी है कि इस प्रक्रिया को अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी। जबलपुर निवासी छात्रा आकांक्षा दुबे व अन्य ने मप्र सरकार के आठ मार्च 2019 को जारी संशोधन अध्यादेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। इसमें कहा गया कि संशोधन के कारण प्रदेश में ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़कर 27 फीसद हो गया है। इससे कुल आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 63 हो गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत किसी भी सूरत में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।

राजस्थान निवासी शांतिलाल जोशी सहित पांच छात्रों ने एक अन्य याचिका में कहा कि 28 अगस्त 2018 को मप्र सरकार ने 15,000 उच्च माध्यमिक स्कूल शिक्षकों के लिए विज्ञापन प्रकाशित कर भर्ती परीक्षा कराई। 20 जनवरी 2020 को इस संबंध में सरकार ने इन पदों पर भी 27 फीसद ओबीसी आरक्षण लागू करने की नियम निर्देशिका जारी कर दी। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दलील दी कि भर्ती प्रक्रिया 2018 में आरंभ हुई, लेकिन राज्य सरकार ने 2019 का अध्यादेश इसमें लागू किया। यह अनुचित है।

2019 में हाई कोर्ट स्थगित कर चुकी है आदेश

अधिवक्ता आदित्य संघी ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि मप्र हाइ कोर्ट ओबीसी आरक्षण 14 फीसद से बढ़ाकर 27 फीसद करने का आदेश 2019 में स्थगित कर चुकी है। इसलिए किसी भी सरकारी भर्ती या शैक्षणिक प्रवेश प्रक्रिया में 14 प्रतिशत से अधिक ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

मेडिकल प्रवेश पर लगाई थी रोक

19 मार्च 2019 को कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश में 14 फीसद से अधिक ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इसी आदेश को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने 28 जनवरी को एमपीपीएससी की करीब 400 भर्तियों में भी ओबीसी आरक्षण बढ़ाने पर अंतरिम रोक लगा दी थी। आदेश वापस लेने का आग्रह हाई कोर्ट ने नहीं माना उक्त आदेश को वापस लेने के सरकार के आग्रह को सोमवार को हाई कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया। राज्य सरकार की ओर से उप-महाधिवक्ता आशीष आनंद बर्नाड ने पक्ष रखा। सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को इस शर्त पर उक्त भर्ती प्रक्रिया जारी रखने के निर्देश दे दिए कि चयन प्रक्रिया को हाई कोर्ट में याचिका लंबित रहने तक अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा।

Shepherd from Karnataka builds 14 ponds on barren hill, turns his village green

Shepherd from Karnataka builds 14 ponds on barren hill, turns his village green


@Abaso Pukale
Eighty-two-year-old shepherd Kaamegowda may be illiterate, but he has been able to do what most so-called educated and environmentally conscious persons only wish they had done. He is credited with greening an entire hillside at Daasanadoddi village in Malavalli taluk of Mandya district, an effort that took him four decades and culminated in 14 ponds being developed and maintained by him. These ponds are filled with water all year round — even during the scorching summers.

It was about 40 years ago when he realised that the almost barren Kundinibetta hill next to his village had sparse shrubs with almost no greenery. While taking his flock of sheep grazing on the hillside, he saw animals and birds stressed from lack of a watering holes on the hill. Whatever water the hill received through rain, only flowed down its slopes. It hardly retained any water and what little remained either evaporated or got absorbed into the ground.  
Kamegowda has built 14 ponds on the barren Kundinibetta hill in Malavalli taluk of Mandya district.

That’s when this 2017 Basavashri awardee hit upon an idea: Why not develop a pond to provide animals and birds a watering hole? It started from there, although he doesn’t remember the precise date, but estimates that, so far, he has spent nothing less than Rs 10-15 lakh in designing, developing and maintaining the 14 ponds, some named after his grandchildren. Almost all the money is from various awards he has won throughout his life.

When The New Indian Express visited his haven — a half-complete house on a two-acre land — the hill presented itself in lush green attire, thanks to the 14 ponds, linked by a waterway that ensures when the upper ponds on the hill are filled, the surplus water flows into the ponds below.

Kaamegowda underwent an eye operation a couple of weeks ago, and the doctors have advised him not to step out for fear of contracting an infection. But this is what he has to say: “I close my eyes and come out; I know every inch here. If a drunkard is advised not to drink, will he stop drinking? I too have an addiction. 

The trigger
The idea to design, develop and maintain hillside ponds was triggered by observing animals and birds struggling on the Kundinibetta hill due to lack of water. Today, he has built 14 fairly large ponds on the hill, turning it into a green abode.

Green deeds earn him ‘Madman’ tag

So passionate and addicted to looking after his 14 ponds is this 82-year-old Kaamegowda of Daasanadoddi in Malavalli Taluk of Mandya district that people in his village and his relatives started calling him a “madman”. For the last 40 years, almost everyday between 5 am and 9 am, he has dug ponds, and grazed sheep from 9 am to 7 pm. “Sometimes, I used to go to the hillock to dig a pond during night with lamp or also on a full moon day,’’ he tells TNIE when the reporter visited his home on Friday.

Meanwhile, the villagers called him “madman”. But that did not deter his spirit, which saw a barren hillside of Kundinibetta near his village turn into lush green slopes. His eccentric ways saw many of his relatives break off from him.  “After I started digging ponds and spending all my savings on them, I started losing my relatives. But the trees, ponds, birds and animals became my relatives. Some made fun of me ...  some opposed me for using government land. But I did not stop. I can challenge anyone! Wherever I take up 5-6 ft of digging, there will be water which will not dry up … even during summers.” 

It all started 40 years ago. To begin with, he sold a couple of his sheep and purchased a shovel, spade, pickaxe, and other tools to dig a pond so that animals and birds easily got water to survive. He started digging the land and the first one was done at Daasanadoddi, taking more than six months. Later, with his little savings, he hired workers who helped him to dig other ponds. All his 14 ponds are interlinked.

“Once the pond at the top is filled, water flows to the next pond located at a lower altitude,” Kaamegowda, who has never gone to school says with pride. Kaamegowda also tests soil quality before taking up digging.


He has made narrow pathways to reach each of these ponds. There are rocks in between,  which host Kaamegowda’s painted quotes on nature, blended with philosophy. He visits all the 14 ponds daily. “Do you eat only one day and starve the entire year? I cannot dig a pond a day and ignore them the rest of the year,” he adds.

He has given his grandchildren’s name to these ponds. He even brought grass from outside to grow them on the hillock, so that soil moisture remains and trees remain green. Kaamegowda has never taken a loan.“I have spent more than `10 to 15 lakh for the ponds, mainly cash from Basavashree and other awards where they gave me cash. I spent this money only on maintaining the ponds. I have two acres of land ... if I did not spend money on ponds, I would have made a few more acres and a better house,” he says.

This octogenarian, who is addicted to constructing and maintaining hillside ponds, only has two acres of land for his children, but 14 ponds that have helped the flora and fauna and the people of his village, 15 km from Malavalli taluk of Mandya district. The Kundinibetta — which has now become Kundurubetta — is a small hillock located in the village and a part of the hill is in the neighbouring Panathalli village. Of the 14 ponds, nine are in his village while five are in Panathalli.

“If I give my children, grandchildren money, it will be spent and they’ll become bankrupt. Instead, if I give them these ponds that has water throughout the year, they will be the richest,’’ says Kamegowda, who resides in a small incomplete house.“When some people give me cash for my personal use, I will say yes, and like a drunkard who spends all that money on liquor, I spend the money on the ponds. It is an addiction!’’ he says.

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