ब्रिटिश भारत मे आरक्षण के जनक तथा
स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक
पेरियार रामस्वामी नायकर
तब हिन्दुस्थान, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र स्टेटों मे बटा था. ब्रिटिश भारत पर ब्रिटिशोंकी पुरी हुकूमत थी. जबकी स्वतंत्र स्टेटोंपर राजों -नवाबोंका राज था. छत्रपती शाहू महाराज ने अपने कोल्हापुर स्टेट में 26 जुलाई 1902 को आरक्षण लागू किया था. मैसोर के वडियार राजाने मैसोर स्टेटमें 1921 में आरक्षण लागू किया था. लेकिन ब्रिटिश भारत में जिनके कारण आरक्षण लागू हुवा, उनका नाम है, पेरियार रामस्वामी नायकर. जिसके तहत न सिर्फ ओबीसीं को आरक्षण मिला, बल्कि दलित, मुस्लिम, ख्रिश्चन और ब्राह्मणों को भी आरक्षण मिला था. लेकिन स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण को धोका हुवा. वो पेरियार रामस्वामी नायकर ही है, जिनके कारण स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण का संरक्षण हुवा. अथ: पेरियार रामस्वामी नायकर को ब्रिटिश भारत में आरक्षण के जनक और स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक कह सकते है.
ओबीसीओं भूलो मत... आरक्षण लाभार्थिओ भूलो मत...
पेरियार रामस्वामी नायकर को भूलो मत...
पेरियार रामस्वामी नायकर ही है, जिनकी बदौलत
ब्रिटिश भारत मे आरक्षण लागु है...
स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण सुरक्षित है...
जन्म-17 सितंबर 1879 : मृत्यु –24 दिसंबर 1973
पेरियार रामस्वामी नायकर के 47 वे (24 दिसंबर 2020) स्मृतिदिन के अवसरपर
तमाम ओबीसी आरक्षण लाभार्थिओकों की ओरसे उन्हे,
विनम्र अभिवादन!
ब्रिटीश भारत में शासन चलाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों को बड़ी तादाद पर तैनात किया गया था. उसके बावजूद प्रशासकीय कार्य में जादा लोगों की जरुरत महसूस हुयी. ब्रिटीश शासन में भाषा तथा अन्य मुद्दों को लेकर समस्या भी पैदा होने लगी. ब्रिटीश प्रशासन में नोकरियों में भारतीय लोगोंकी जरुरत महसूस हुयी. तब नोकरियों में छोटे पदोंपर भारतीय लोगोंकी भरती चालू की. ब्रिटीश प्रशासन में नोकरियों में आरक्षण की मांग, भारत में सबसे पहले ब्राह्मण वर्ग ने की. (ब्रिटीश प्रशासन में नोकरियों में शुद्र –अतिशुद्रोंके आरक्षण की मांग, भारत में सबसे पहले महात्मा जोतीराव फुले ने की थी) तब ब्राह्मणेतर वर्ग को (अब्राह्मण) लोकसंख्या के अनुसार प्रशासन में प्रतिनिधित्व मिले, इसलिए पेरियार रामस्वामी नायकर ने जन्म (17 सितंबर 1879) मुवमेंट चलायी,बड़ा संघर्ष किया. उसके परिणामत: 1 एप्रिल 1927 में मद्रास पेसींडेंसी के असेम्ब्ली (मद्रास राज्य/प्रांत मे केरल, कर्नाटक, आंध्र, ओरिसा तथा तामिलनाडू का विशाल क्षेत्र व्याप्त था) एक कम्युनल जी.ओ.निकाला गया। जिसके द्वारा 12 आरक्षित जगहों की रोस्टर (बिंदु नामावली) निश्चित की गयी. उसमें ओबीसी - 5, ख्रिश्च न - 2, मुस्लिम - 2, अस्पृश्य - 1 और ब्राह्मण - 2, जगह दिये गये. डॉ.पी.सुब्बरायन के मंत्रिमंडल में शामिल पेरियार रामस्वामी नायकर के साथी श्री. मुदलीयार कॅबिनेट मंत्री थे, उन्होंने इस कायदे को लागू किया. इस तरह भारत की नोकरीओं में पहली आरक्षण निती सरकारी आदेश द्वारा लागू हुयी. इससे ओबीसीओं को सबसे जादा 5 जगह प्राप्त हुए थे.
भारत का नोकरीओं मे पहला आरक्षण :
मद्रास पेसींडेसी कम्युनल जी.ओ. 1 एप्रिल 1927
12 आरक्षित जगहो का रोस्टर बिंदू
ओबीसी - 5 जगह, ब्राह्मण - 2 जगह,
मुस्लीम - 2 जगह, ख्रिश्चरन- 2 जगह, अस्पृश्य- 1 जगह
वर्ष 1918 तक ब्रिटिश भारत पर ब्रिटीशों का शासन तथा प्रशासन क्षेत्र में संपूर्ण नियंत्रण था. भारतीयों को शासन- प्रशासन में शामिल करने का निर्णय ब्रिटीश राजकर्तांओं ने 1919 में लिया. मान्टेग्यु चेम्स फोर्ड रिपोट द्वारा सिख, मुस्लिम, ख्रिश्च न, अँग्लो इंडियन, युरोपिअन, ज्युर और अश्पृरश्या को स्वतंत्र समाज का (कम्युनिटीका) दर्जा देकर राजनैतिक आरक्षण (प्रतिनिधित्व) निती लागु हुयी. भारत के प्रधानमंत्री रॅम्से मॅकडोनाल्ड ने 17 अगस्त 1932 में कम्युनल अवार्ड अंतर्गत अस्पृश्यों के लिए स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र घोषित किया. गांधी-आंबेडकर के दरम्यान हुये पुणे करार द्वारा उसे संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया. सिख, मुस्लिम, ख्रिश्च न, अँग्लो इंडियन, युरोपियन, ज्युख तथा अस्पृश्यों को दिया गया कम्युनल अवार्ड राजनैतिक आरक्षण (प्रतिनिधित्व) था.
स्वतंत्र भारतमें नये राजघटना के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसीमे लागु हुवा, ओबीसी आरक्षण रद्द होनेका हायकोर्ट ने आदेश निकाला. उसके खिलाप मद्रास राज्यमे बड़ा आन्दोलन किया गया. परिणामत: केन्द्रीय सरकारको मजबूर होकर भारतीय राजघटनामें पहेला बदलाव का प्रस्ताव पास करना पड़ा और ओबीसी आरक्षण स्वतंत्र भारत में पुन: एक बार लागु हुवा. भारतका जी. ओ. द्वारा पहेला आरक्षण मद्रास प्रेसीडेंसी में लागु हुवा. जिसके मूल शिल्पकार थे,पेरियार रामस्वामी नायकर ! जिनके चलते स्वतंत्र भारतमें ओबीसी आरक्षण सुरक्षित हुवा.उस महापुरुषका नाम है, पेरियार रामस्वामी नायकर ! समाजविघातक, कालबाह्य, पुराने हुए मान्यरताओं पर पेरियार रामस्वारमी नायकर जैसा कठोर आघात शायद ही किसी और ने किया होगा. सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, महिला तथा युवा वर्ग के क्षेत्र में पेरियार का कार्य केवल अतुलनीय कहा जा सकता है. लेकिन ब्राह्मणेतर समाज को नोकरी तथा शिक्षण क्षेत्र में आरक्षण (प्रतिनिधित्वत) प्राप्त् कर देने का पेरियार रामस्वा्मी नायकर का कार्य भारत के सामाजिक तथा राजनैतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाए ऐसा है.
ब्राह्मणेतर समाज के प्रतिनिधित्वव के लिए पेरियार रामस्वाेमी मिटिंगज्, सभाओं द्वारा जनमत तयार कर रहे थे. कांग्रेस पार्टी ने खुद ब्राह्मणेतर समाज के लिए आरक्षण निती का पुरस्कामर करना चाहीए, ऐसी मांग गांधी तथा कांग्रेस के अनुयायी के नाते पेरियार रामस्वाकमी नायकर कर रहे थे. इसी मांग को लेकर पेरियार रामस्वागमी नायकर के प्रयत्नेवश मद्रास राज्यक के वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन में (थिरुनेलवेल्लीर - 1920) पहला आरक्षण रिझोल्युकशन को ठुकरा दिया गया. उसके बाद मद्रास राज्य के हर वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन में आरक्षण रिझोल्युुशन (1921 - तंजावर), (1922 - थिरुवर), (1921 - सेलम), (1924 - थिरुवण्णाणमलाई (, 1925 कांचीपुरुम ) में लगातार रखा गया, लेकिन हर बार उसे ठुकरा दिया गया. 1924 के वार्षिक अधिवेशन में मद्रास प्रांत कांग्रेस के अध्यएक्ष रामस्वाामी नायकर ही अध्य क्ष थे. उन्होंाने अपने अध्येक्षीय भाषण में जाती आधारित आरक्षण (प्रतिनिधित्व ) की जरुरत तथा महत्वह को विस्तादर से तर्क के साथ पेश किया. उसके बावजुद आरक्षण रिझोल्युेशन को मंजुरी नहीं मिली.
तब हिन्दुस्थान, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र स्टेटों मे बटा था. ब्रिटिश भारत पर ब्रिटिशोंकी पुरी हुकूमत थी. जबकी स्वतंत्र स्टेटोंपर राजों -नवाबोंका राज था. छत्रपती शाहू महाराज ने अपने कोल्हापुर स्टेट में 26 जुलाई 1902 को आरक्षण लागू किया था. मैसोर के वाडियार राजाने मैसोर स्टेटमें 1921 में आरक्षण लागू किया था. लेकिन ब्रिटिश भारत में जिनके कारण आरक्षण लागू हुवा, उनका नाम है, पेरियार रामस्वामी नायकर. जिसके तहत न सिर्फ ओबीसीं को आरक्षण मिला, बल्कि दलित, मुस्लिम, ख्रिश्चन और ब्राह्मणों को भी आरक्षण मिला था. लेकिन स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण को धोका हुवा. वो पेरियार रामस्वामी नायकर ही है, जिनके कारण स्वतंत्र भारत में ओबीसी आरक्षण का संरक्षण हुवा. अथ: पेरियार रामस्वामी नायकर को ब्रिटिश भारत में आरक्षण के जनक और स्वतंत्र भारत मे ओबीसी आरक्षण के सरंक्षक कह सकते है.
1925 के कांचीपुरम कांग्रेस वार्षिक अधिवेशन में टी.व्हीओ. मुदलियार सभाध्यिक्ष थे. आरक्षण नीती के मंजूरी के लिए उन्हों ने 30 मतों के आवश्यीकता होने की बात की. रामस्वारमी नायकर ने तुरंत 50 मतों को इकठ्ठा किया. आरक्षण के पक्ष में बहुमत सिध्दश हुआ. लेकिन कुछ लोगों ने शोर मचाकर आरक्षण के रिझोल्युिशन को नामंजूर होने की घोषणा की. इससे पेरियार रामस्वाछमी नायकर महासंतप्तक हुये. कांचिवरम अधिवेशन को बिचोबीच छोडकर अपना निषेध व्येक्त् करते हुए रामस्वाामी नायकर तथा उनके साथी अधिवेशन से बाहर चले आये. केरल के वायकोम मंदीर सत्याकग्रह और गुरुकूलम प्रकरण में नाराज / संतप्तह रामस्वाहमी नायकर ने कांग्रेस का साथ नहीं छोडा था. लेकिन आरक्षण मुद्देपर कांचिपुरम अधिवेश्नस का सभात्या ग करनेवाले पेरियार रामस्वाेमी नायकर ने न केवल गांधी तथा कांग्रेस का त्यापग किया. बल्कि कांग्रेस का सर्वनाश करने की भिष्म प्रतिज्ञा की थी.
पेरियार रामस्वाभमी नायकर ने बहोत सारे क्षेत्रों में कार्य किया. लेकिन ब्राह्मणेतर समाज को नोकरी, शिक्षण तथा प्रशासकीय क्षेत्र में प्रतिनिधीत्वे / भागीदारी दिलाने के लिए जाती आधारित आरक्षण नीति का पुरस्कातर करने में / उसका आग्रह करने में पेरियार रामस्वाीमी नायकर सबसे आगे थे. पेरियार का यह सबसे बड़ा कार्य था. मद्रास प्रांत में 1 अप्रेल 1927 में कानून द्वारा लागु हुआ. आरक्षण (ओबीसी का) रामस्वारमी नायकर के अथक संघर्ष का “फलीत” था.
पेरियार रामस्वाीमी नायकर की जाती कोनसी !
पेरियार रामस्वाीमी नायकर की जाती कोनसी है ! इसके बारेमे संभ्रम है. विकीपीडिया में उनको बलिजा/ बनिजगा/ बनिया जातीके बताया है. नायकर होने के कारण नायडू/ नायकर जातीसे भी जोड़ा गया है. विजयनगर साम्राज्य में जाकर उन्हे क्षत्रिय भी बताया गया है. चातुरवर्णाधीष्टित जाती व्यवस्था के सक्त खिलाफ होने कारण पेरियार रामस्वा्मी नायकर ब्राह्मण वर्चस्व के कठोर विरोधक रहे. वायकोम सत्याग्रह के अग्रणी पेरियार ही थे. ब्राह्मण – बनिया के खिलाफ उनका संघर्ष चला.चातुरवर्णाधिष्टित जाती व्यवस्था में से शूद्र –अति शूद्र जाती वर्ग के लिए उनका संघर्ष चला. ईश्वर नहीं, आत्मा नहीं, जाती नहीं, ये उनकी विचार त्रिसुत्री थी. इसलिए नायकर-त्व को त्याग कर वो पेरियार रामस्वामी कहलवाने लगे थे. उत्तर भारतमे पेरियार रामस्वादमी नायकर को धनगर जातीका मानते है, पेरियार रामस्वालमी नायकर की प्रतिमा लेकर वे सामाजिक मूवमेंट चला रहे है. कर्नाटकमे उन्हे नायकर/बेडर/रामोशी जातीका मानते है, पेरियार रामस्वाजमी नायकर की प्रतिमा लेकर वे सामाजिक मूवमेंट चला रहे है. जबकी तमिलनाडूके धनगर/ कुरुम्बन पेरियार रामस्वाीमी नायकर को धनगर जातीका नहीं मानती. उसी तरह महाराष्ट्र के नायकर/बेडर/रामोशी पेरियार रामस्वाधमी नायकर को नायकर/बेडर/रामोशी जातीका नहीं मानती. पेरियार रामस्वानमी नायकर जातीसे नहीं, अपने कार्य – कर्तृत्वसे महापुरुष -पेरियार बने थे. जातीका अभिमान ठीक है. किसी महापुरुष के अपने जातीके होने से गौरवान्वयित होना भी ठीक है. लेकिन महापुरुष अगर अपनी जातीका होनेसे ही उनको माना जाना, क्या ठीक है ? किसी भी महापुरुष –पेरियार की पहचान जाती/वर्ण/वंश/धर्म/ भाषा/प्रांत/प्रदेश/देश से नहीं, उसके कार्य – कर्तृत्वसे होती है, होनी चाहिये. पेरियार रामस्वाणमी नायकर की लढाई, आत्मसन्मान की लढाई थी. मूलत: मानवता के लिए उनका संघर्ष था. इन मूल मानवी जीवन मूल्योंके के खिलाफ जो कार्य कर रहे थे, उनके विरुद्ध उन्होने जीवनभर संघर्ष किया. इस बात को समझने से ही पेरियार रामस्वाजमी नायकर का चरित्र हम जान सकते है. पेरियार रामस्वाणमी नायकर के चरित्र को जान कर ही उनको मानने मे हम सब की भलाई है.
15 अगस्तस 1947 को भारत स्वकतंत्र हुआ. स्वेतंत्र भारत का संविधान बनाया गया. अनुसूचित जाती (15) और अनुसूचित जमाती (7.5%) आरक्षण भारतीय संविधान में शामिल करने में डॉ. बी. आर. आम्बे5डकर सफल हुए. 52 प्रतिशत ओबीसीओंको आरक्षण वंचित रखा गया. संविधान के 340 कलम के अनुसार ओबीसीओं की (सोशल अॅण्ड एज्यु केशनली बैकवर्ड क्लाास की) सूचि बनाने का कार्य भारत के राष्ट्रापति को तथा सरकार को संविधानतः सौंपा गया. (मद्रास प्रांत में बैकवर्ड क्लावस की (ओबीसी) सुची तैयार थी. कोल्हासपुर संस्था न में 1902 से तथा मैसोर संस्था्न में 1924 से ओबीसीओं की सुची तैयार थी.) भारत के संविधान द्वारा एस.सी. तथा एस.टी को स्पेष्ट तथा निःसंदीग्ध् स्वीरुप में आरक्षण लागु हुआ था. लेकिन ओबीसीओं के साथ वैसे नहीं हुआ था.
स्वितंत्र भारत में भारत का नया संविधान लागु हुआ. संविधान के 16(1) के नुसार `सबको समान अवसर' इस तत्व का आधार लेते हुए, 1927 के आरक्षण विरोध में मद्रास हायकोर्ट में (1950) याचिका दायर की, मद्रास हायकोर्ट ने (भारत के नये संविधान के पृष्ठरभूमि पर) मद्रास असेम्बेली का दिनांक 1 अप्रेल 1927 का सरकारी (आरक्षण) अध्याादेश रद्द होने का आदेश दिया. पेरियार और उनके साथियों ने इसके खिला'फ सुप्रिम कोर्ट में अपिल की. परंतु सुप्रिम कोर्ट ने भी मद्रास हायकोर्ट के निर्णय को कायम किया. इस निर्णय से संपुर्ण मद्रास प्रांत में खलबली मच गयी. असंतोष निर्माण हुआ. पेरियार रामस्वाउमी नायकर का क्रोधाग्नीन भडक उठा. भारत के नये संविधाननुसार एस.सी./ एस.टी. आरक्षण निती मद्रास के साथ संपूर्ण भारत में लागु हुई थी. लेकिन सुप्रिम कोर्ट के आदेशानुसार ओबीसी का आरक्षण खतरे में आया था. सुप्रिम कोर्ट के इस निर्णय के खिला'फ रामस्वाेमी नायकर ने सिंहगर्जना की. 13 अगस्तर 1950 को मद्रास शहर में आयोजित प्रचंड सभा में पेरियार रामस्वाुमी नायकर के मुख से क्रोधाग्नीन प्रकट हो रहा था. भारतीय जनतंत्र तथा प्रशासन और न्यााय व्य वस्थाम पर से विश्वारस उड जाने की बात करते हुए ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर स्वातंत्र राज्यव की मांग किये जाने की घोषणा रामस्वानमी नायकर ने की.
पेरियार ने कहा,"The present agitation is not agitation mere communal Government Order (G.O.). It will lead us to agitate for the separation of Dravidnad." पेरियार रामस्वाtमती नायकर तथा उनके साथियों ने संपूर्ण मद्रास प्रांत में आंदोलन खड़ा किया. पेरियार के इस महाआंदोलन तथा सिंहगर्जना के सामने भारत सरकार को झुकना पडा. भारत के संविधान में पहला अमेंडमेंट करना पडा. संविधान अधिनियम 1951 के अनुसार सेकशन 15(4) के द्वारा नोकरीओं में तथा शिक्षण में ओबीसीओं के संविधानात्म क आरक्षण के अधिकार को मान्य ता मिेली. ओबीसी का आरक्षण बच गया.
ब्राह्मणेतर जाती समुह / वर्ग के न्याेय्य प्रतिनिधित्वओ का मुद्दा पेरियार रामस्वाषमी नायकर के मिशनका सबसे बड़ा, महत्व पूर्ण तथा अहम अजेंडा था. इस आरक्षण को लेकर पहले पेरियार रामस्वारमी नायकर ने कांग्रेस को छोडा था और बादमें ओबीसी आरक्षण को लेकर भारतीय संघराज्यय से बाहर जाने की घोषणा की थी. इससे, इस मुद्दे पर पेरियार कितने संवेदनशील थे, इसका स्परष्टष दर्शन होता है.
ब्रिटीश राज्यथकर्ता चले गये. अॅंग्लो इंडियन को आरक्षण देकर चले गये. मुसलमानों को पाकिस्तागन-बांगला देश देकर चले गये. बावजूद उसके मुसलमानों को भारत में भी रखा गया. सिखों के लिए अलग पंजाब राज्य बनाया. अनुसूचित जाती / जनजाती को राजनैतिक (लोकसभा, विधानसभा), नोकरीओं में (प्रशासन में), शिक्षण क्षेत्र में आरक्षण दिया गया. लेकिन 52 ओबीसीओं को, बहुजन हिंदू समाज को प्रतिनिनिधित्वं / आरक्षण वंचित रखा गया. परिणामतः ओबीसी जीवन के हर क्षेत्र में "सबसेन जादा पिछडा गया वर्ग " बनकर रह गया. रामस्वाामी नायकर के कार्य फलतः तामिलनाडू तथा कर्नाटक राज्य" में सुप्रिम कोर्ट के आरक्षण में 50 प्रतिशत सिलींग के लागु न होने से ओबीसीओं को आरक्षण का थोडासा 'फायदा मिला. इसी क्षेत्र से अंतरराष्ट्रीीय दर्जे का ब्रेन बैंक ओबीसी ने भारत तथा विश्वाभर को दिया है.
उत्तटर भारत में पिछडा वर्ग आंदोलन में नया नेतृत्वे खड़ा हुआ है. महाराष्ट्रर में ओबीसी नेतृत्व खड़ा हो रहा है. मुलायम, लालू, भुजबल जैसे नेतृत्वै को मान्यतता मिल रही है. लेकिन ओबीसीको आज तक न्या़य नहीं मिला है. आरक्षण का लाभ नहीं मिला है. उच्चे शिक्षण में ओबीसी आरक्षण आज भी खतरे में है. Privatisation, Liberalisation and Globalisation निती के चलते आरक्षण निती का सही अर्थ नष्टi हुआ है. ओबीसी नेतृत्वआ को (सामाजिक तथा राजनैतिक) ओबीसी आरक्षण लागु कर लेने में आजतक सफलता नहीं मिली है. इस पृष्ठओभुमीपर पेरियार रामस्वांमी नायकर के ओबीसी आरक्षण संबंधी कार्य को देखने की / समजने की जरुरत महसूस होती है. नोकरी, शिक्षा तथा सत्ताआ में (शासन, प्रशासन,शिक्षण क्षेत्र में) प्रतिनिधित्वी, ये सामाजिक मुवमेंट का सबसे बड़ा महत्वंपूर्ण पहेलु है. उसे प्राप्तम करने के उद्देश्य, से पेरियार रामस्वा)मी नायकर, अलग राज्ये की बात करने को तैयार होते है. इस बात से पेरियार खुद को राष्ट्रकविरोधी माने जाने के खतरे को स्विकारने को तैयार हुये थे. स्वनसन्माेन तथा सामाजिक न्यायय तथा प्रतिनिधित्वि के लिए पेरियार कितने आग्रही तथा कर्मट थे, इसका भी दर्शन होता है.
देश में तथा विदेश में जाकर समाज जागृती का कार्य करनेवाले पेरियार रामस्वाटमी नायकर का निर्वाण 95 वे वर्ष के वयोकाल में 24 दिसंबर 1973 को हुआ. 1987 के वर्ष में भारत सरकार ने पेरियार के कार्य गौरवार्थ 25 रुपये का पोस्टमल टिकट प्रकाशित किया गया था.
डॉ.बी.आर.आंम्बे डकर का कार्य राष्ट्री य तथा राष्ट्रसव्याापी हुआ. परिणामतः अनुसूचित जाती की मुवमेंट भी राष्ट्र व्यायपी बनी. साथ ही साथ उसका लाभ अनुसूचित / जनजाति को भी मिला. लेकिन, ओबीसी की मुवमेंट राष्ट्ररव्याीपी तथा राष्ट्री य नहीं बनी. इस परिप्रेक्ष्यी में पेरियार रामस्वारमी नायकर का कार्य 52 प्रतिशत ओबीसीओं के लिए मार्गदर्शक दिपस्तंतभ बन सकता है.
ओबीसी के साथ अन्या वर्ग को भारत का पहला नोकरीओं में आरक्षण प्राप्त कर देने वाले (कम्युिनल जी.ओ. 1 अप्रेल 1927) पेरियार रामस्वाहमी नायकर का राष्ट्रीपय तथा राष्ट्रेव्यायपी स्व रुप छुप गया है / छुपाया गया है. द्रविडनाड की माँग, हिन्दी विरोध और अघोर नास्तिकतावाद के कारण शायद पेरियार रामस्वा्मी नायकर की प्रतिमा उर्वरित भारतमें अलगसी बन गयी थी. पेरियार सरल स्वभाव के थे, बड़े तात्विक थे, तर्कनिष्ट (Rational) थे, मानवता के बड़े समर्थक थे. ढोंग के सक्त खिलाफ थे. शायद इस लिए वे अपनी बात पर अड़िग रहते थे. धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्र के क्रांतीकारी / बंडखोर पेरियार की पहेचान पुरे भारत भर में कम - जादा पायी जाती है. उन्होने देव/ईश्वर के अस्तित्वको नकारा था. धर्मकों नकारा था. पुरुष सत्ताधीष्टित समाज को नकारा था. महिला वर्ग के अधिकार को लेकर वो बहोत ही संवेदनशील थे. शिक्षा को वो सर्वोपरि मानते थे. चातुरवर्णाधीष्टित जाती व्यवस्था के सक्त खिलाफ होने कारण वो ब्राह्मण वर्चस्व के कठोर विरोधक रहे. वायकोम सत्याग्रह के अग्रणी पेरियार ही थे. ब्राह्मण – बनिया के खिलाफ उनका संघर्ष चला. इसलिए पेरियार रामस्वाममी नायकर की प्रतिमा उर्वरित भारतमें अलगसी पड़ गयी. लेकिन ओबीसी आरक्षण के आद्य सेनापती / पायोनियर स्वतरुप पेरियार रामस्वानमी नायकर की पहेचान छुपी हुई है. पेरियार के कारण न सिर्फ ओबीसी को आरक्षण मिला, बल्कि दलित, मुस्लिम, ख्रिश्चन तथा ब्राह्मण को भी आरक्षण मिला. इस तरह पेरियार और आरक्षण का अटुट संबंध है. और उससे भी जादा ओबीसी आरक्षण से पेरियार का संबंध अटुट है.
आज २४ दिसंबर 2020 है.. पेरियार रामस्वामी नायकर का 47 वा स्मृती दिवस है. आवो, हम सब मिलकर उनके कार्य - कर्तृत्व और नेतृत्व का दिलसे गंभीरतापूर्वक स्मरण करे. आनेवाले समय मे पेरियार रामस्वामी नायकर जी ने बताये हुये राहपर चले ऐसी शपथ लेते ही. यही उनके प्रती सच्ची श्रद्धांजली होगी...
टिप :उपर्युक्त लेख एस एल अक्कीसागर- प्रेसिडेंट, ऑल इंडिया रिझर्व बैंक ओ.बी.सी एम्पलाइज वेलफेअर असोसीएशन लिखित यशवंत नायक मासिक 2011में सर्वप्रथम प्रकाशित...
लेखन – संकलन:
श्री. एस. एल. अक्कीसागर
संस्थापक अध्यक्ष, ऑल इंडिया रिझर्व बैंक ओ.बी.सी एम्पलॉइज वेलफेअर असोसीएशन
संस्थापक अध्यक्ष, रिझर्व बैंक एस.ई.बी.सी. / ओ.बी.सी एम्पलॉइज असोसीएशन मुंबई
कार्यकारी संपादक – विश्वाचा यशवंत नायक (29 सितम्बर 1994 से)
लेखक – सत्यशोधक दंडनायक - संत कनकदास (31 मई 2005)
सदस्य, शेफर्ड इंडिया इंटरनॅशनल, दिल्ली
सदस्य, श्री कगिनेली महासंस्थान कनक गुरुपीठ, कर्नाटक
राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय समाज पक्ष (5 जनवरी 2018 से)
मो. :9969608338 ईमेल : sidsagar1956@gmail.com : मुंबई 24.12.2020
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